वो एक महान चित्रकार था। धन, प्रसिद्धि उसे बहुतायत में मिली थी; लेकिन अंदर से वह असंतुष्ट था। वह एक ऐसी पेंटिंग बनाना चाहता था जो उसकी मृत्यु के बाद भी जीवित रहे। अंत में, उसने कंस ने चट्टान से मारकर देवकी के शिशु को मार डाला इस दृश्य को चित्रित करने का फैसला किया। सबसे पहले उसने शिशु का चित्र बनाने के लिए उस बच्चे की तलाश की। उसने सैकड़ों बच्चे देखे, लेकिन मासूम, सुंदर, भावुक बच्चा आखिरकार उसे एक झुग्गी में पाया। उसके शराबी पिता को प्रतिदिन भुगतान करने का निर्णय लेने के बाद उसने चित्रकार को बच्चे की तस्वीर बनाने की अनुमति दे दी। जब पैसा हाथ में आता, तो वह तुरंत शराब पिने के लिए निकल जाता।
15-20 दिनों में बच्चे की तस्वीर बनकर तैयार हो गई।
लेकिन उसे एक क्रूर, दुष्ट दिखने वाला, शैतानी चेहरा वाला आदमी नहीं मिला जो कंस की तस्वीर बना सके।
साल दर साल बीतते गये। पच्चीस साल बीत चुके।
अपनी तस्वीर कभी पुरी नहीं होगी, ऐसा उसे महसुस होने लगा। लेकिन अचानक एक दिन उसने वह चेहरा अखबार में देखा। यह एक हत्यारे की तस्वीर थी जिसे अपनी पत्नी और दो बच्चों की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
तुरंत उसने महसूस किया, 'यही हमारा कंस है!'
उसने सरकारी स्तर पर प्रयास किए और अनुमति प्राप्त की।
वह जेल जाकर कैदी को सामने खड़ा कर कंस का चित्र बनाने लगा। और कंस का चित्र बनाने लगा। जैसे ही चित्र पूरा होने लगा, चित्रकार को खुशी होने लगी। उसे यकीन था कि उनकी तस्वीर कमाल की होगी। वह चित्र बनाते वक्त कैदी से बात करता था।
इससे उसे पता चला कि शराब पीने के बाद घर आने पर बिवीने कहा, घर में खाने को कुछ नहीं है और
बच्चे भी भूखे है, इसलिए क्रोध में आकर उसने तीनों के सिर पर बैट मार कर मार डाला। यह कहते हुए उसे बुरा नहीं लगा। तस्वीर एक महीने के भीतर पूरी हो गई।
चित्रकार पूरी तरह से संतुष्ट था। उसने कहा कि,'आपका काम खत्म हो गया है।'
तब कैदी ने कहा, "श्रीमान, क्या मैं देख सकता हूं कि मेरी तस्वीर कैसी बनी है?"
'ओह, देखो, और मुझे भी बताओ कि यह कैसा है।' जब चित्रकार ने यह कहा तो कैदी ने आगे आकर चित्र की ओर देखा। उसके चेहरे का अहंकार गायब हो गया, उसकी आँखों में पानी आ गया और वह रोने लगा। चित्रकार कुछ समझ नहीं सका।
'क्यों रो रहे हो?" जब उसने यह पूछा, तो कैदी ने अपना चेहरा अपने हाथों से ढँक लिया और कहा, 'साब..., साब..., वो बच्चा मैं हूँ, वो बच्चा मैं ही हूँ। मेरी माँ हमेशा मुझसे कहती थी, जन्म लेने वाला शिशु निष्पाप ही होता है। संस्कार से वह साधु बन जाता है। नहीं तो शैतान।'
अर्थ: भाग्य को दोष देने के बजाय अच्छे संस्कार अपनाएं।
-मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली (महाराष्ट्र)
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