गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

कृषि केंद्र सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं

 कोरोना महामारी के बाद देश की आर्थिक विकास दर में लगातार गिरावट आ रही है। कृषि विकास की स्थिति भी इससे भिन्न नहीं है। विकास दर घट रहा हैं, लेकिन कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन अच्छा रहेगा, ऐसी आभासी तस्वीर बनाई जा रही है। देश भर के किसानों की यह अपेक्षा है कि कृषि लाभदायक हो और किसानों के हाथ में दो पैसे रहने चाहिए। लेकिन केंद्रीय बजट ने इस मामले में किसानों को काफी निराश किया है। एक ओर कृषि की मिठास गाई जा रही है और दूसरी ओर कृषि के लिए वित्तीय प्रावधानों को कम करने और यह कैसे और गहरा होता जाएगा, इसके लिए नीतियां लागू की जा रही हैं। पिछले बजट में कृषि के लिए 1.32 लाख करोड़ का अल्प प्रावधान किया गया था। इस साल इसे भी घटाकर 1.25 लाख करोड़ कर दिया गया है। इससे स्पष्ट है कि कृषि के व्यापक विकास की कितनी ही बातें कर लें, कृषि केन्द्र सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं है। आजादी का 75 साल अमृतकाल के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस दौर में भी खेती दिन-ब-दिन घाटे में जा रही है। आम किसानों की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है। आर्थिक तंगी में किसान अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहे हैं। देश में बेरोजगारी उच्च स्तर पर है, इसलिए युवाओं में अत्यधिक बेचैनी है। महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई है और गरीब और मध्यम वर्ग का नुकसान हो रहा है। इसके बावजूद इस देश के किसानों, नौजवानों और आम नागरिकों के हाथ केंद्रीय बजट से कुछ भी नहीं पहुंचा है। कृषि ऋण का लक्ष्य 20 लाख करोड़ रखा गया है, और ऋण का फोकस डेयरी, पशुपालन और मत्स्य पालन पर होगा। वास्तव में यह संख्या बजटीय प्रावधान नहीं है, बल्कि ऋण प्रावधान का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह नहीं भूलना चाहिए कि बैंकों द्वारा किसानों को कृषि ऋण प्रदान किया जाता है और बैंक लक्ष्य के आधे से भी कम प्रदान करते हैं। इस देश में किसान सभी फसलों में गुणवत्तापूर्ण निवेश, उन्नत उत्पादन तकनीक, उपज के उचित मूल्य, मूल्य श्रृंखला विकास के लिए प्रसंस्करण और सुविधाओं की मांग करते हैं। लेकिन उन्हें आंशिक योजनाओं, सब्सिडी में फंसा कर रखा जाता है।  इस बजट में यही काम किया गया है।-मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली (महाराष्ट्र) 

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