सोमवार, 30 जनवरी 2023

भारत जोड़ो यात्रा की सफलता को बनाए रखने की चुनौती

राहुल गांधी की ''भारत जोड़ो पदयात्रा'' आखिरकार संकल्पपूर्ती हो ही गई। सात सितंबर को कन्याकुमारी से शुरू हुई इस ऐतिहासिक पदयात्रा ने कश्मीर तक साढ़े तीन हजार किमी की दूरी पूरी की। पांच महीने पैदल चलना आसान नहीं है। इस यात्रा को पुरा कर राहुल गांधी ने अपने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। यह पहले से ही व्यक्त किया जा रहा था कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा समस्या होगी। शुक्रवार को ऐसा ही हुआ। जम्मू के बनिहाल से शुरू हुई यात्रा जैसे ही कश्मीर घाटी के काजीगुंड इलाके में दाखिल हुई, लोगों ने सुरक्षा में सेंध लगाकर राहुल गांधी के करीब जाने की कोशिश की। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इस वक्त सुरक्षा पुलिस गायब थे। राहुल गांधी को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। जब यात्रा दिल्ली में थी, तब भी पुलिस की आलोचना की गई थी। दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में कानून व्यवस्था केंद्र सरकार के नियंत्रण में है। लिहाजा विपक्ष को मोदी सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी तत्काल गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर सुरक्षा पर ध्यान देने का अनुरोध करते हुए संदेह जताया। अन्य राज्यों की तरह यहां भी 'भारत जोड़ो' का स्वागत किया गया। 2016 में बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाली 'जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी' की महबूबा मुफ्ती,  जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला यात्रा में 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' की तरह उमड़ पड़े। बेशक इस यात्रा ने मोदी के विरोधियों को खासा प्रभावित किया। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के निरस्त होने के बाद, इस राज्य के नागरिकों ने पहली बार बिना किसी डर के राहुल गांधी के 'भारत जोड़ो' में भाग लिया। सड़क के दोनों ओर भारी भीड़ थी।  लगातार अन्याय का शिकार हो रहे पंडित राहुल गांधी से मिले। उन्होंने यह कहते हुए राहुल गांधी में उम्मीद की किरण तलाशनी शुरू कर दी कि धारा रद्द होने के बावजूद घाटी में स्थिति 'जैसी है' वैसी ही है। बेरोजगारों को राहत देने के प्रयासों का देश में कोई विरोधी नहीं था, ऐसी तस्वीर बनी थी। ऐसा लगता है कि यात्रा के बाद तस्वीर बदल गई है। इस यात्रा में देश के गैर सरकारी संगठनों, कलाकारों, लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि ने भाग लिया। लोग परिवर्तन की इच्छा के कारण राहुल गांधी से मिल रहे थे। बेरोजगारों में मायूसी है।  विदेशों में भारतीयों की नौकरियां जा रही हैं।  कई युवा भारत लौट रहे हैं। जो अच्छी शिक्षा लेकर स्नातक हुए हैं, वे बेरोजगार होकर इधर उधर घूमते रहे हैं। इस समय स्कूल और कॉलेजों में पढ़ने वाले उनके छोटे भाई-बहन को समाज में अपने बड़े भाई की हो रही उपेक्षा देखने की नौबत आई है। उन्हें डर है कि हमारे साथ भी ऐसी ही स्थिति होगी। उन्हें हिम्मत देने का काम राहुल गांधी ने किया है। उनमें उम्मीद जागी है कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है।

मोदी सरकार ने 'मेक इन इंडिया' के नारे के तहत यांत्रिक 'बब्बर शेर' का लोगो प्रकाशित किया था। लेकिन यह पहल सरकार को भारी पड़ी। शेर कब गायब हो गया पता ही नहीं चला। इसके पीछे की मंशा उद्योगों को बढ़ावा देना और बेरोजगारों को रोजगार देना था। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए, 'भारत जोड़ो' से राहुल गांधी ने युवाओं को निराशा से बाहर निकालने के लिए अपने कौशल की ओर मुड़ने की सलाह दी। जनता के बीच यह भावना है कि भारत जोड़ो ने विपरीत परिस्थितियों में आशा की किरण देखाई है। वे सभी लोग जो देश में बदलाव चाहते थे और चाहते थे कि इस देश में धर्मनिरपेक्षता बनी रहे, उन्होंने अपने बंधनों को छोड़कर यात्रा में भाग लिया। अगर नेता महंगी कारों में लोगों तक पहुंचते हैं तो उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता, बल्कि उन्हें नफरत की नजर से देखा जाता है।  राहुल गांधी पैदल चले गये। बांध पर किसानों से मिले। कार्यकर्ताओं, छात्रों, महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों से मिले और उनकी समस्याएं सुनीं और उनके प्रश्न को समझें। उन्होंने लोगों में उत्साह पैदा किया। हालांकि इसे बनाए रखना कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती है।

यात्रा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव किया गया।  खड़गे अध्यक्ष बने। तीन महीने हो गए हैं;  लेकिन वे राजस्थान में समस्या का समाधान नहीं कर सके। राहुल गांधी के दखल के बाद भी गहलोत-पायलट की जंग कम नहीं हुई। ऐसी स्थिति है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस के कुछ नेता कभी भी भाजपा में जा सकते हैं। प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले का सुर वरिष्ठ नेताओं से मेल नहीं खाताहै। मामूली अंतर के साथ कांग्रेस की स्थिति हर राज्य में समान है। अध्यक्ष होने के बावजूद खड़गे का पार्टी पर बहुत कम प्रभाव है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सारे सूत्र के सी वेणुगोपाल के हाथ में हैं। वह राहुल गांधी के करीबी हैं। 'भारत जोड़ो यात्रा' के राज्यों से गुजरने के बाद कांग्रेस के स्थानीय संगठनों ने राज्य में पार्टी को मजबूत करने के लिए क्या किया? उत्तर निराशाजनक है। कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए संगठनात्मक निर्माण कार्य की आवश्यकता है। 24, अकबर रोड की 'सफाई' करनी होगी।  लेकिन क्या खड़गे के पास इसका अधिकार है?

कांग्रेस का 'हाथ से हाथ जोड़ो' अभियान 26 जनवरी से तीन महीने के लिए लागू किया जाएगा। माना जा रहा है कि मोदी सरकार की नाकामी के बारे में राहुल गांधी की बातों को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की जानी चाहिए। लेकिन देखना होगा कि गांधी परिवार के सामने चमकने वाले कितने नेता लोगों के घर घर जाते हैं। भारत जोड़ो' के मौके पर लोगों में जो उम्मीद जगी है, उसे कायम रखने के लिए कांग्रेस पार्टी को डठे रहना जरूरी है। नहीं तो सारी मेहनत बेकार जाएगी। 'मोदी की हवा' थोपना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। 2009 में,  मध्य वर्ग के अधिकांश वोट जो कांग्रेस के पास थे, वो 2014 में भाजपा में स्थानांतरित हो गए।  2019 में सिर्फ मोदी के नाम पर जोड़ा गया था।  इन वोटों को वापस पाने के लिए कांग्रेस को रणनीति बनानी होगी। मतदाता भी अब समझदार हो गए हैं। ओडिशा विधानसभा चुनाव की घोषणा 2019 के लोकसभा चुनाव की तारीखों के दिन ही की गई थी। मतदाताओं ने एक साथ राज्य के लिए बीजू जनता दल और लोकसभा के लिए भाजपा को वोट दिया। नतीजतन, बीजेपी लोकसभा में एक से आठ सीटों पर चली गई और बीजेडी को आठ सीटों का नुकसान हुआ। संक्षेप में, व्यवहार्य विकल्प बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।  राहुल गांधी को एक होनहार नेता के तौर पर देखा जाता है।

देखना होगा कि इस साल कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना आदि में होने वाले चुनावों में उनकी छाप दिखती है या नहीं। ऐसा हुआ तो साढ़े तीन हजार किमी.  लंबी' की 'भारत जोड़ो' यात्रा का प्रयास भी रंग लाएगा। 30 जनवरी को महात्मा गांधी की 75वीं पुण्यतिथि है। राहुल गांधी ने 'भारत जोड़ो यात्रा' के समापन के लिए इस शहीद दिवस को चुना है। इसका कारण यह था कि यात्रा का मुख्य सूत्र 'नफरत छोड़ो' था। यह अहिंसा का उपदेश देने वाले महात्मा गांधी के विचारों से लिया गया था। इस अवसर पर अधिकांश विपक्षी दल भी 'भारत जोड़ो' पहल में भाग ले रहे हैं और उनके 'भय मुक्त भारत' के संकल्प के लिए गांधी के विचारों से अधिक प्रेरक क्या हो सकता है? -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली (महाराष्ट्र)

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