शनिवार, 28 जनवरी 2023

साइबर कानूनों की लगातार गहन समीक्षा करनी होगी

इंटरनेट ने ज्ञान के नए दरवाजे खोले हैं और मानव जीवन में एक नए युग की शुरुआत हुई है। सूचना प्रौद्योगिकी की दौड़ यहीं नहीं रुकी। जीवनशैली में बदलाव इतनी तेजी से हुआ है कि उस गति से चलना एक चुनौती बन गया है। यद्यपि यह सर्वव्यापी है, इसके एक पहलू पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है और स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने हमें इसकी याद दिलाई है। बैंकिंग जगत में करोड़ों की अनियमितता से जुड़े मामलों को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपे जाने के लिए अदालत में एक याचिका दायर की गई थी। अपराधियों द्वारा इन वित्तीय कदाचारों को करने में जिस आसानी से उच्च तकनीक का उपयोग किया जाता है, उसे देखते हुए, जांच एजेंसियों के पास ऐसे अपराधों को रोकने और उनकी जांच या जांच करने के लिए नवीनतम तकनीक के साथ जनशक्ति होना आवश्यक है। कोर्ट की यह राय मौजूदा समय में बहुत महत्वपूर्ण है और इस मामले में ही नहीं बल्कि व्यापक संदर्भ में भी इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए। 

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार के साथ-साथ रिजर्व बैंक भी बड़े औद्योगिक समूहों के करोड़ों रुपये का कर्ज नहीं चुकाने के व्यवहार पर गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहा है। इसीलिए इन मामलों को जांच के लिए सीबीआई को सौंपने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के जज संजय किशन कौल, अभय ओक और बी.  वी  नागरत्न की बेंच ने  कहा कि ऐसे सभी मामलों को सीबीआई को सौंपकर उस व्यवस्था को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। दरअसल, अगर इस तरह की हेराफेरी की रकम 50 करोड़ रुपये से ज्यादा है तो इन मामलों को 'सीबीआई' को सौंपा जाना चाहिए, इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा गठित एक समिति ने सिफारिश की है। कमेटी का कहना है कि इसकी वजह यह है कि स्थानीय पुलिस इतने करोड़ की हेराफेरी की जांच नहीं कर पाएगी। लेकिन बेंच ने साफ कर दिया है कि इसका समाधान सीबीआई के भरोसे नहीं रहना है। इस मामले में एक और अहम बात यह है कि रिजर्व बैंक ने देश भर के विभिन्न बैंकों में चल रही गड़बड़ी को लेकर हाथ उपर उठाये है।  भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया है कि ये बैंक किसे कर्ज देने के लिए पूरी तरह से अधिकृत हैं और  अपने पिछले कर्ज या अन्य गलत कामों के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। साथ ही, इस याचिका की सुनवाई के दौरान, रिजर्व बैंक ने यह स्थिति अपनाई कि वह इस हेराफेरी के आरोपियों के पासपोर्ट जब्त करने या इन मामलों को 'फास्ट ट्रैक कोर्ट' में चलाने के बारे में कुछ नहीं कर सकता है। इसमें कम से कम कुछ सच्चाई है;  क्योंकि इस पासपोर्ट या 'फास्ट ट्रैक कोर्ट' के संबंध में निर्णय लेने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इस संबंध में केंद्र के विचार प्रस्तुत करने को कहा है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि यह उलझाव अभी और बढ़ने वाला है, इसलिए आम लोगों के मन में यह शंका पैदा होना स्वाभाविक है कि जिन लोगों पर सैकड़ों करोड़ का कर्ज है, वे आजाद रहेंगे। हालाँकि, इस पृष्ठभूमि में भी, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए मुख्य निर्देश की ओर;  साथ ही चेतावनी को नजरअंदाज करने से काम नहीं चलेगा। यानी कोर्ट ने सवाल उठाया है कि सीबीआई जांच की मांग करना कितना उचित है। उन्होंने बताया कि पहले से ही विभिन्न मामलों की जांच का भारी बोझ है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि संगठन के पास ऐसे मामलों की जांच के लिए आवश्यक नवीनतम और जटिल तकनीक और पर्याप्त ज्ञान नहीं है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया है कि इस संबंध में जानकार लोगों की एक समिति नियुक्त की जानी चाहिए। 

इस मौके पर आधुनिक समय में सभी समाजों और सरकारी संस्थानों के सामने का संकट आगे आया है। अर्थात यदि हम नवीन ज्ञान से रूबरू नहीं हुए तो दुष्ट प्रवृत्तियाँ इस शक्ति का प्रयोग अपने उद्देश्यों के लिए करेंगी। इसीलिए अगर उन्हें रोकना है तो कानूनों को लगातार अपडेट करना होगा। मौजूदा गति को देखते हुए साइबर कानूनों की हर पांच साल में गहन समीक्षा करनी होगी।  कानून बनाने और सार्वजनिक मामलों को विनियमित करने वाली संस्थाओं को दो कदम आगे रहना होगा। 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' ने अब जीवन के सभी क्षेत्रों को कवर कर लिया है। मानव जीवन को अधिक सार्थक, अधिक सुखी, अधिक कल्याणकारी बनाने के लिए नवीन ज्ञान और विज्ञान का प्रयोग करना चाहिए। यह चुनौती आसान नहीं है। जैसे-जैसे तकनीक के नए फायदे सामने आएंगे, वैसे-वैसे अपराधी भी उस तकनीक का इस्तेमाल करेंगे और इस तरह कई नए खतरों का सामना करना पड़ सकता है। इसीलिए तकनीकी प्रगति की गति के साथ तालमेल बिठाने के लक्ष्य को सर्वाधिक प्राथमिकता देनी होगी। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली (महाराष्ट्र)

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