मंगलवार, 3 जनवरी 2023

नव शिक्षा उत्सव की राह पर

विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तेजी से हो रहे बदलावों को देखते हुए उन्नत, प्रशिक्षित जनशक्ति की भारी मांग होने जा रही है। इसे ध्यान में रखते हुए अब कदम उठाने चाहिए।  नई शिक्षा नीति में उस दिशा में कई अच्छे सुझाव हैं, लेकिन उनके क्रियान्वयन पर ध्यान देना और बाधाओं को दूर करना चुनौती बना हुआ है। आज दुनिया में टेक्नोलॉजी तेजी से बदल रही है, इसमें महारत हासिल करने के लिए विभिन्न स्किल्स वाले मैनपावर की जरूरत है। मौजूदा हालात में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इससे बेरोजगारी बढ़ती है।  शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और रोजगार की स्थिति बदतर है। इसके बाद से अधिकांश काम मशीनीकृत होने जा रहा है। इसके लिए कौशल विकास की आवश्यकता है।  नई शिक्षा नीति का अधिकतम उपयोग कैसे किया जा सकता है, यह उस नीति के क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा। इसलिए अब असली जरूरत नई नीति के क्रियान्वयन पर ध्यान देने की है। उसमें आने वाली बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है।

वर्तमान में शिक्षण संस्थानों को कई बदलावों का सामना करना पड़ रहा है। संसाधनों की उपलब्धता, सक्षम शिक्षकों और शिक्षा पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन करने होंगे। इसको लेकर राज्य और केंद्र सरकार को कमर कसनी होगी। यह 2025 तक होने की उम्मीद है। गरीब और जरूरतमंद छात्रों के लिए छात्रवृत्ति जारी रहेगी। यह चुनौती जितनी आसान लगती है उतनी आसान नहीं है लेकिन बेहतर होगा कि हम इस नई रणनीति को अपनाकर प्रभावी ढंग से लागू कर सकें। 

नई नीति के मुताबिक मौजूदा 10+2 की जगह 5+3+3+4 का ढांचा होगा। स्कूली पाठ्यक्रम के अलावा, नीति छात्रों के व्यक्तित्व और निहित गुणों के विकास में संतुलन बनाए रखने की उम्मीद करती है। नीति में कहा गया है कि छात्रों को भाषण, संगीत, साहित्य, कला, टीम वर्क, नेतृत्व, अनुसंधान, प्रयोग, उद्यमशीलता, समाज सेवा, नैतिकता, साहसिक कार्य, देशभक्ति, परोपकार, मानवता, खेल, चरित्र जैसे विभिन्न पहलुओं में पेश और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक सभी सामग्री, पुस्तकालय, शोध केंद्र, प्रयोगशालाएं, पुस्तकें, कंप्यूटर, खेल के मैदान, शैक्षिक सामग्री आदि होना भी जरूरी है। इसके साथ ही छात्र को निर्धारित कोर्स भी पूरे करने होंगे। नई शिक्षा नीति में सिर्फ परीक्षा में अच्छे अंक लाने से ज्यादा समग्र विकास पर ध्यान देने वाला है। सूचना संग्रह और विश्लेषण, सूचना प्रौद्योगिकी, डिजिटलीकरण, सोशल मीडिया, सामाजिक परियोजनाओं के प्रबंधन, मानवतावाद, महिला सशक्तिकरण, प्रदूषण नियंत्रण, पर्यावरण संरक्षण, नर्सिंग और पैरा- चिकित्सा सेवाएं जैसे विभिन्न क्षेत्रों में चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रशिक्षित युवाओं की बहुत आवश्यकता है। ऐसे कई क्षेत्र आज न केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई देशों में चुनौती दे रहे हैं। जहां आज दुनिया भारत के युवाओं की तरफ बड़ी उम्मीद से देख रही है। इसलिए हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि इस क्षेत्र में प्रशिक्षित जनशक्ति कैसे तैयार की जाए। बदलते समय को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत है। इसे लचीला रखना चाहिए। विशेष शिक्षा क्षेत्र (सेज) की अवधारणा भी अनूठी है। इसे भी अच्छी तरह लागू किया जाना चाहीए। इसमें जोर दिया जाएगा कि शिक्षा समावेशी होनी चाहिए ताकि देश में कोई भी व्यक्ति किसी भी कारण से निरक्षर न रहे। 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' उनमें से एक है।

 इस नीति की एक अन्य विशेषता प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की एक नई अवधारणा है। प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा में चंचल, खोज-उन्मुख, गतिविधि-आधारित शिक्षा शामिल है। उदाहरण के लिए, बहुविकल्पी शिक्षण होगा जैसे वर्णमाला, भाषा, संख्या, गिनती, रंग, आकार, पहेलियाँ, समस्या समाधान, नाटक, पेंटिंग आदि। राष्ट्रीय शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने 0-3 वर्ष और 3-8 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के लिए इस संबंध में एक पाठ्यक्रम विकसित किया है। इसके कारण, यह माता-पिता और शिक्षकों दोनों के लिए एक मार्गदर्शक होगा।  इसके लिए आवश्यक व्यवस्था सरकारी के साथ-साथ निजी विद्यालयों से भी स्थापित की जा रही है। इस संबंध में शासन स्तर पर भी काम होने की उम्मीद है। यह भी निर्देशित किया जाता है कि प्रत्येक कक्षा में 30 से अधिक छात्र नहीं होने चाहिए;  लेकिन इनका पालन कहां तक ​​होगा इस पर संशय बना हुआ है। शिक्षकों की मानसिकता को नई नीति के अनुरूप ढालना भी एक बड़ी चुनौती है। हमें यह देखना होगा कि हम इससे कैसे निपटेंगे। सफलता इस पर निर्भर करेगी। स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इस संबंध में निवारक उपाय किए जाने चाहिए।  प्रोजेक्ट वाइज अलग-अलग ग्रुप बनाए जाएंगे। प्रोजेक्ट वाइज अलग-अलग ग्रुप बनाए जाएंगे।  कला, नाटक, संगीत, भाषा, विज्ञान, खेल आदि जहां प्रत्येक छात्र को प्रदर्शन करने का मौका मिलता है और शिक्षा अधिक आसान, सुंदर और आनंददायक हो जाती है। इस सिस्टम से छात्रों पर परीक्षा को लेकर होने वाला तनाव कम होगा। इस नीति में शिक्षकों को काफी महत्व दिया गया है। उनके प्रशिक्षण के लिए अलग से व्यवस्था की गई है। अलग-अलग स्कूलों में शिक्षकों का आदान-प्रदान भी किया जा सकता है। नीति में यह भी कहा गया है कि शिक्षकों के वेतनमान और अन्य बुनियादी सेवा रियायतों में उचित संशोधन होगा। इसमें सुधार के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं।शिक्षकों को अप-टू-डेट रहने के लिए प्रोत्साहित करने का संकल्प लिया गया है। इसका ब्योरा तय कर तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। विभिन्न प्रकार की शिक्षा प्रदान करने वाले महाविद्यालयों को भी विश्वविद्यालयों में एकीकृत किया जाना चाहिए। निकट भविष्य में कई स्वायत्त विश्वविद्यालय उभरेंगे। शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय पेशेवर मानक भी विकसित किए जा रहे हैं।  सभी शिक्षकों के  बी.एड.  करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। यह सब करते हुए शिक्षा का बाजारीकरण न हो जाए इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।  गुणवत्ता नियंत्रण एक प्रमुख मुद्दा होगा। 

धन जुटाने के तरीके नई नीति को लागू करने के लिए धन जुटाना होगा। इस संबंध में कंपनियां 'कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी' के माध्यम से योगदान दे सकती हैं। भारत में जल्द ही 'सोशल स्टॉक एक्सचेंज' शुरू होने जा रहा है।  इससे आवश्यक धन जुटाने में आसानी होगी। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि अभी से तैयारी शुरू कर दी जाए। यह सोचने में कोई हर्ज नहीं है कि स्कूल और कॉलेजों के कई पूर्व छात्र भी इस मामले में योगदान दे सकते हैं। शिक्षा जैसे अच्छे कारण से धन की कभी कमी नहीं होगी। दुनिया भर में भारतीय शिक्षण संस्थानों के नेटवर्क को फैलाने के लिए सरकार कुछ वर्षों के बाद कुछ स्वायत्त विश्वविद्यालयों को प्रोत्साहित और मदद कर सकती है। भारतीय योग, आयुर्वेद, संगीत, रंगमंच, फिल्म, नृत्य, साहित्य, कला, धर्म, पर्यटन, ग्रामीण जीवन, परिवार व्यवस्था और संस्कृति दुनिया के कई युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं। भारत की अर्थव्यवस्था भी मजबूत है और बढ़ रही है।  यह युवाओं का देश है। आज भारत के नेतृत्व को वैश्विक स्तर पर भी स्वीकार किया जा रहा है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारत की राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक, औद्योगिक और सामाजिक छवि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर उज्ज्वल है। अवसर लाजिमी है। सवाल उनका फायदा उठाने के लिए तैयार रहने का है।  केवल एक अच्छी शिक्षा प्रणाली ही ऐसा कर सकती है। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली।महाराष्ट्र।

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