गुरुवार, 5 जनवरी 2023

सरकार के सामने रोजगार सृजन की चुनौती

पिछले दिसंबर में देश में बेरोजगारी दर 8.30 फीसदी दर्ज की गई थी। पिछले 16 महीनों में यह उच्चतम बेरोजगारी दर चिंता का कारण है, जबकि अर्थव्यवस्था के कोरोना वायरस के प्रभाव से उबरने की उम्मीद जताई जा रही थी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर में देश की बेरोजगारी दर 8 फीसदी रही थी। दिसंबर में यह बढ़कर 8.30 फीसदी हो गई। अक्टूबर में यह दर 7.92 फीसदी और सितंबर में 6.43 फीसदी थी। यानी पिछले कुछ महीनों से बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ रहा है। हालांकि, नवंबर में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल-जून तिमाही में दर्ज की गई 7.6 प्रतिशत बेरोजगारी दर जुलाई-सितंबर तिमाही में गिरकर 7.2 प्रतिशत हो गई थी। बेशक अक्टूबर से दिसंबर तिमाही के सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़े उपलब्ध होने के बाद इसमें बढ़ोतरी के संकेत मिल रहे हैं। पांच साल पहले बेरोजगारी दर 5 फीसदी थी।  अब यह करीब 8 फीसदी है। 

इस दिसंबर 2022 में, हरियाणा में सबसे अधिक बेरोजगारी दर 37.4 प्रतिशत दर्ज की गई थी। इसके बाद राजस्थान 28.5 फीसदी, दिल्ली 20.8 फीसदी, बिहार 19.1 फीसदी, झारखंड 18 फीसदी। यह सबसे ज्यादा बेरोजगारी वाले पांच राज्य हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, दिसंबर में ओडिशा में सबसे कम बेरोजगारी दर 0.9 प्रतिशत दर्ज की गई। इसके बाद गुजरात में 2.3 फीसदी, कर्नाटक में 2.5 फीसदी, मेघालय में 2.7 फीसदी और महाराष्ट्र में 3.1 फीसदी बेरोजगारी दर कम है। पूरे साल महाराष्ट्र की बेरोजगारी दर 2 से 4.5 फीसदी के बीच दर्ज की गई है। 

दिसंबर में शहरी बेरोजगारी दर दहाई अंक (10.09 फीसदी) पर पहुंच गई। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस महीने ग्रामीण क्षेत्रों में यही दर 7.55 प्रतिशत थी। नवंबर में, शहरी बेरोजगारी दर 8.96 प्रतिशत थी, जबकि ग्रामीण बेरोजगारी दर 7.44 प्रतिशत थी। यानी, ग्रामीण बेरोजगारी में आंशिक कमी दर्ज की गई, जबकि शहरी बेरोजगारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। यह सिलसिला पिछले तीन महीने से जारी है। शहरी बेरोजगारी दर्शाती है कि अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में गिरावट आई है। यह इस बात का संकेत है कि महंगाई के कारण निर्माण, इंजीनियरिंग, सेवा क्षेत्र में लेन-देन ठप हो गया है। उपभोक्ताओं की मांग में गिरावट आई है, जो दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था अभी भी पटरी पर नहीं है। कोरोना काल में बड़ी संख्या में नौकरी गंवाने वाले लोगों को कृषि क्षेत्र ने समायोजित किया था। अब जब आर्थिक हालात सामान्य हो रहे हैं तो ये जमातें फिर से शहरों में दाखिल हो गई हैं। लेकिन जानकारों का कहना है कि बड़ी संख्या में नागरिक रोजगार का इंतजार कर रहे हैं। 

ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि महंगाई की वजह से मांग में गिरावट 2023 में भी महसूस की जाएगी। कुछ विशेषज्ञों ने इन वर्षों में देश में रोजगार में करीब 20 फीसदी गिरावट की आशंका जताई है। सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र प्रभावित होने की संभावना है। कोरोना वायरस के असर से 2022 में टूरिज्म, हॉस्पिटैलिटी, फाइनेंशियल सर्विसेज आदि सेक्टर रिकवरी कर रहे थे। अगर बड़े पैमाने पर कोरोना का प्रकोप नहीं होता है तो इस साल भी इन इलाकों में राहत की उम्मीद है। हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि 2023 में दुनिया का एक तिहाई हिस्सा मंदी की चपेट में आ जाएगा। इसका असर रोजगार सृजन पर पड़ेगा। हालांकि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, रोजगार सृजन तुलनीय नहीं रहा है। जुलाई-सितंबर तिमाही में देश का चालू खाता घाटा रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। 2022 में, डॉलर के मुकाबले रुपये में 10.14 प्रतिशत (74.33 से 82.72 तक) की गिरावट आई। इसके साथ ही महंगाई पर नियंत्रण और रोजगार सृजन केंद्र की मोदी सरकार के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। कोरोना काल में बेरोजगारी में बड़ी बढ़ोतरी हुई थी। 2020 में बेरोजगारी दर आठ फीसदी थी।  अगले साल यानी 2021 में यह घटकर 5.98 फीसदी रह गया। इसलिए, माना जा रहा था कि अर्थव्यवस्था ठीक हो रही है।  लेकिन 2022 में फिर से बेरोजगारी बढ़ गई है। इसलिए विकास दर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज कर रोजगार सृजन की चुनौती सरकार के सामने है। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली। महाराष्ट्र।

 

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