मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

खुशी पर फिरा पानी

शेखर और शर्मिला को आज शाम बहुत दिनों के बाद एक साथ टहलने जाने का मौका मिला।  क्योंकि बच्चों की परीक्षाएं समाप्त हो गई थीं और वह दो दिनों से दादा-दादी के यहां  गए थे।  शर्मिला एक बैंक में नौकरी करती थी।  और शेखर  कंपनी में शिफ्ट में काम करता था।  ऐसे माहौल में, उन दोनों के लिए दो घंटे एक साथ बिताना संभव नहीं था।  पिछले पांच-छह महीनों में आज पहली बार, उंहें थोड़ा समय मिला था।  शाम को सभी सड़कों पर भीड़ होती है। 
इसलिए उंहों ने पास ही के उद्यान में जाना पसंद किया।  उद्यान में नरम, रसीला हरा मैदान था। फव्वारे की शीतलता थी। बगीचे में जास्मिन के फुलों का बेहोश खुशबू और चारों ओर खेल रहे मासूम बच्चे।  वातावरण प्रसन्न था। उद्यान में घुसते ही उन दोनों को बहुत सुगंधित महसूस हुआ।
 कुछ विषयों पर बातचित शुरू हुई।  लेकिन  देखते देखते  बातचित में बुरे विषयों का शिरकाव हुआ। शर्मिला ने जेठ और जेठानी के व्यवहार की आलोचना शुरू कर दी।  शेखर ने शर्मिला के  भाई के  लाड़-प्यार वाले बच्चों के बारे में बात करना शुरू कर दिया।  विषय बढ़ता रहा और फिर उनके अपने बच्चों का माध्यम, गुण, शेखर की इस बारे में उदासीनता आदी विषय आ गये। अंधेरा हो रहा था।  साथ ही, उनके दिमाग विवाद और मतभेदों से भरे थे।  उपद्रव बढ़ता गया।  दोन्हो चुप हो गये।
 उनके सामने लाल सूरज ढल राहा था, सुगंधित हवा, उस पर डोलते हुए फूल, ये सभी सुंदर वातावरण उनकी बाहरी और आंतरिक मन के लिए अपरिचित हो गए।
 वह अबोला के साथ घर आई।
देखीए, इस रम्य वातावरण  में इतना अप्रिय विषय निकालने की जरूरत है?  यदि आप अपने दैनिक जीवन की हलचल को भूलने के लिए प्रकृति के करीब जाना चाहते हैं, तो आपको इसका आनंद लेने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है।  उस समय एक साथ बिताए खूबसूरत पलों को अगले कुछ दिनों के लिए दिमाग पर छिड़का जाना चाहिए।  लेकिन हम में से कई लोग यह भूल जाते हैं।  और अच्छे पल छूट जाते हैं।  इस तरह के एक एक पल का आनंद लेने के लिए, आपको सचेत रूप से अप्रिय चीजों से बचना होगा।

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