शनिवार, 17 सितंबर 2022

सांस लेने में कठिनाई


 'ग्रीन पीस इंडिया’' की रिपोर्ट से चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि भारत की 99 प्रतिशत आबादी प्रदूषित वातावरण में रहती है।  पूरी दुनिया में मिट्टी-जल-वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ी है और इसके घातक परिणाम सामने आ रहे हैं।  भारत शुरू से ही सभी प्राकृतिक स्रोतों के प्रदूषण में सबसे आगे रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित श्वसन स्तर से कहीं अधिक प्रदूषित हवा में हम रहते है।  ये दिशानिर्देश सांस लेने योग्य हवा में पीएम-2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) कणों की मात्रा बताते हैं। लेकिन भारतीय लोग प्रदूषित हवा में उससे पांच गुना अधिक कणों के साथ सांस ले रहे हैं। इसलिए सांस की गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ता है।  मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।  इन सभी मामलों को गंभीरता से लेते हुए आम नागरिकों से लेकर सरकार तक सभी को देश में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाना चाहिए।

पीएम-2.5 का संबंध हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों से है और अगर वातावरण में अधिक कण हों तो ये मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो जाते हैं।  2019 में भारत में हर तरह के प्रदूषण के कारण 23.5 लाख लोगों की समय से पहले मौत हो गई।  इनमें से 71 फीसदी (16.7 लाख) की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई।  इनमें 9.8 लाख लोगों की मौत पीएम-2.5 या इससे कम हवा में होने से हुई, जबकि 6.1 लाख लोगों की मौत घर में होनेवाले वायु प्रदूषण से हुई।  इससे हमें वायु प्रदूषण की गंभीरता का एहसास होना चाहिए।

2019 में वैश्विक स्तर पर प्रदूषण से होने वाली मौतों के कारण 46 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था।  यह वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 6.2 प्रतिशत था।  वायु प्रदूषण की तीव्रता उत्तर भारत में सबसे अधिक है।  भौगोलिक संरचना और ऊर्जा, उद्योग, कृषि और अन्य गतिविधियाँ बहुत अधिक प्रदूषण का कारण बनती हैं। भारत में जीवाश्म ईंधन का घर के अंदर होने वाला ज्वलन देश में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण है। फिर कोयला जलाने और फसल जलाने से होने वाले मौतों का नंबर आता है।  हाल ही में, भारत में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है।वर्तमान में भारत की 99 प्रतिशत आबादी प्रदूषित वातावरण में रहती है, लेकिन 56 प्रतिशत आबादी और 62 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में रहती हैं।  वायु प्रदूषण फेफड़ों की बीमारियों का कारण बनता है।  यह फेफड़ों की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी प्रभावित करता है।इससे व्यक्ति को सांस की गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है।  मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।  इन सभी मामलों को गंभीरता से लेते हुए आम नागरिकों से लेकर सरकार तक सभी को देश में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाना चाहिए।

भारत में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम शुरू किया गया है।  इस कार्यक्रम के तहत हवा में पीएम-2.5 की मात्रा 2017 की तुलना में 2024 तक 20 से 30 प्रतिशत तक कम करने का निर्णय लिया गया।  केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य स्तर पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड लंबे समय से अस्तित्व में हैं।हालांकि, केंद्र और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के बीच कोई समन्वय नहीं है।  इसके अलावा, देश में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में सक्षम एक मजबूत केंद्रीय प्रशासनिक प्रणाली नहीं है।  जीवाश्म ईंधन, कोयला और फसल अवशेषों के जलने को कम करके वायु प्रदूषण को बहुत कम किया जा सकता है।

इस ईंधन के वैकल्पिक ईंधन स्रोत अब विकसित किए जा रहे हैं।  इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।  देश में एथेनॉल, सीएनजी इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ाना चाहिए।  बड़े और छोटे उद्योगों के लिए नियम बनाकर और उनके सख्त अनुपालन से वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है।इसी तरह, चूंकि घर में होने वाला प्रदूषण छोटा है, इसलिए इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।  ग्रामीण क्षेत्रों में भी चूल्हे की जगह गैस का प्रयोग बढ़ाया जाए।  जहां चूल्हे का उपयोग अनिवार्य हो, वहां वे धुंआ रहित चूल्हे होने चाहिए। 

-मच्छिंद्र ऐनापुरे, जत जि. सांगली



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