एक राजा के पास सुलक्षण नाम का एक हाथी था। एक बार वह हाथी पागल हो गया। उसने अपने पास आने वाले महावत को मार डाला। जो भी उसके पास गया, उसने उसे सूंड से उठा लिया और पीट-पीटकर मार डाला। पूरे शहर में कोहराम मच गया। "सुलक्षण पागल हो गया है" तो खबर हर जगह चली गई। राजा ने कई महावतों को बुलाया। उन्हें भारी इनाम की पेशकश की गई, लेकिन कोई भी महावत हाथी को शांत नहीं कर सका।
एक बार महात्मा बोधिसत्व उस देश में घूमते हुए आए। वे ऐसी गजपरिक्षा में भी कुशल थे। राजा ने उन्हें यह समाचार सुनाया कि हाथी पागल हो गया है और उनसे हाथी को होश में लाने का अनुरोध किया। बोधिसत्व ने कहा, 'आओ, मुझे हाथी दिखाओ।'
बोधिसत्व ने हाथी को देखा। बहुत देर तक देखने के बाद, उन्होंने देखा कि हाथी में पागलपन का कोई लक्षण नहीं है। उन्होंने कहा, 'सुलक्षण बिल्कुल भी पागल नहीं है। उसने महूता से पूछा, "यहाँ कौन कौन आता है?" वे क्या कहते हैं?' 'महुत ने कहा, "यहां आने वाले कुछ लोग हिंसा, चोरी, द्युत, कौर्य, शराब की बात करते हैं।" यह सुनकर हाथी पागल हो जाता है।
बोधिसत्व राजा के पास आये और कहा, "महाराज, हाथी बुरे विचार सुनकर क्रूर हो गया है। सज्जनों को गजशाला के चारों ओर घूमने दें। हाथी शांत हो जाएगा।'' राजा ने साधूओं को बुलाया और उनसे गजशाला के पास रहने का अनुरोध किया।
"हिंसा मत करो, दया करो, शांत रहो।" इस तरह उपदेश करते हुए साधू घूमते रहे। ये अच्छे विचार सुलक्षण हाथी के कानों में पड़ते ही हाथी शांत हो गया।
इस कहानी से कोई भी महसूस कर सकता है कि आजकल युवा पीढ़ी टेलीविजन और मोबाईल के आक्रमण के कारण हिंसक और क्रूर होती जा रही है।अगर उन पर लगातार ऐसें ही बमबारी होती रही, तो उनसे अच्छी चीजों की उम्मीद करना गलत होगा। उनके पास अच्छी संस्कृति के लिए, उन्हें अच्छे विचारों को सुनना चाहिए, इसके लिए अनुकूल वातावरण बनाना चाहिए, तभी यह पीढ़ी शांतिपूर्ण और अच्छी तरह से व्यवहार करेगी। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली (महाराष्ट्र)
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