रविवार, 22 जनवरी 2023

ए मेरे प्यारे वतन...

हेमेन गुप्ता द्वारा निर्देशित, काबुलीवाला गुरुवर्य रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित इसी नाम की कहानी पर आधारित फिल्म है। काबुलीवाला (बलराज साहनी), अफगानिस्तान में रहने वाला एक गरीब पठान अपने छोटे और खुशहाल परिवार के साथ जिसमें उसकी माँ और आठ साल की बेटी अमीना है। काबुलीवाला अपने परिवार में खुश है।  लेकिन उसके घर गरिबी है। उसने अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए एक साहूकार से कर्ज लिया है। एक दिन वह साहूकार से अपना वादा पूरा करने के लिए अफगानिस्तान छोड़कर पड़ोसी हिंदुस्थान जाने का फैसला करता है। उसने कहीं नौकरी करने, पैसा कमाने और साहूकार को भुगतान करने का मन बना लिया है। काबुलीवाले के लिए उसकी बेटी ही सब कुछ होती है। लेकिन उसके पास लड़की को छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं है।  एक दिन सुबह-सुबह वह अपनी बेटी को छोड़कर हिंदुस्थान चला जाता है। उसके साथ साहूकार के कर्ज का बोझ और अपनी बेटी की याद है। उसने कागज के एक टुकड़े पर उसके पंजे के निशान ले लिए।  ये छापें उसके अकेलेपन में उसका साथ देंगी। हिंदुस्थान आने के बाद, काबुलीवाला की दिनचर्या गली-गली जाकर बच्चों को गोलियां, बिस्कुट, खिलौने बेचना, साहूकारों को भुगतान करने के लिए पैसे जुटाना और उन कमरों में रहना था, जहाँ अफगानिस्तान से आए पठान पहले ही देश छोड़ चुके थे। एक दिन उसकी मुलाक़ात एक घर के पास रहने वाली मिनी नाम की लड़की से होती है और जो काबुलीवाला अपने देश को छोड़कर चला आता है, वह उस नन्ही मिनी में अपनी अमीना को देखता है। काबुलीवाला अपना घर छोड़ने के लिए दुखी है लेकिन वही काबुलीवाला अब मिनी उसके के जीवन में आने से खुश है। काबुलीवाला अमीना समजकर उस छोटी बच्ची के साथ खेलने, उसकी उम्र का होकर और उससे बात करने के एहसास में डूबा हुआ है। और एक दिन नन्ही मिनी बीमार पड़ जाती है और यह प्रसंग काबुलीवाले को अपनी अमीना की याद दिलाता है जो दूर अफगानिस्तान में है। मिनी की बीमारी से द्रवित काबुलीवाला अपने कमरे में आता है। वह अपने देश, अपने घर को याद कर भावुक हो जाता है। तभी कमरे में पठानों के गाने की आवाजें उसके कानों पर पड़ीं 'ए मेरे प्यारे वतन...' प्रेम धवन के बोल, संगीत सलिल चौधरी और आवाज मन्ना डे ने दी है।

काबुलीवाले के लिए उसका घर, उसका देश ही सब कुछ होता है। जिस मिट्टी में हम पैदा हुए, जिस मिट्टी में पले-बढ़े, वही हमारा देश है! हमारे देश के लोगों, उनके सानिध्य में बिताए वो सुखद पल। उन पर की गई प्रेम की वर्षा उनके जीवन के उपवन के समान है। काबुलीवाला का देश आज गरीब हो सकता है लेकिन फिर भी वह देश ही उसका सब कुछ है। 

मेरे प्यारे वतन, ए मेरे बिछडे चमन,
तुझपे दिल कुर्बान 
तूहि मेरी आरजू, तुहि मेरी आबरू...
तुहि मेरी जान

सुबह का समय, सूरज अभी उदय होना बाकी है। दूर-दूर तक फैली पर्वत श्रृंखलाएँ।  लोग अपनी आजीविका के लिए धीरे-धीरे ऊँटों पर दूर जा रहे थे, आकाश में बिखरे बादल और एक हलकी सी कोमल हवा। काबुलीवाले की आँखों के सामने वह सवेरा आ जाता है, जिस दिन उसने अपना वतन, अपना घर छोड़ा। उस दिन के बाद से उन्होंने अपनी बेटी को नहीं देखा।  हवा के झोंकों के साथ उसके दिल में यादें दौड़ती हैं। अपने देश की वह रंगीन शाम याद आती है। क्षितिज पर ईकटठा हुई रंगीन मैफिल। वे पेड़  पत्तों की हलचल।  काबुलीवाला और अधिक संवेदनशील हो जाता है। और मन्ना डे की भावपूर्ण आवाज हमें और भी भावुक कर देती है।

  तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को सलाम
चूम लु उस जुबा को जिसपे आए तेरा नाम
सब से प्यारी सुबह तेरी, सब से रंगी तेरी शाम
तुझ पे दिल कुर्बान

काबुलीवाला जो अपने देश से दूर आया है जैसे की वह अपनी माँ से दूर एक बच्चे के समान। हमारा देश माता के समान होता है, इसलिए देश को माता कहा जाता है।काबुलीवाला भी अपने देश के प्रति यही भावना रखता है। लेकिन देश को मां के रूप में याद करते हुए उन्हें अपनी मां और बेटी की भी याद आती है।

श्याम का समय। घर में टिमटिमाती रोशनी और घर में लाठी के सहारे इधर उधर घूमती मां। अधिक उम्र होने के कारण वह चल भी नहीं पाती है। जिस उम्र में हम उसका साथ देने की जरूरत है, तभी हम दूर देश में आ गए। कौन उसकी मदद करेगा? हमारी लडकी का? वो तो छोटी लड़की है, वो क्या सहारा देगी? सामने पर्वतमाला, विशाल आकाश और अमीना घर की ओर भागती हुई। मानो उस पर बूढ़ी दादी की देखभाल करने की जिम्मेदारी हो। पूरा दृश्य काबुलीवाला की आंखों के सामने आ जाता है और वह व्याकुल हो जाता है। 

मा का दिल बन के कभी सिने से लग जाता है तू
और कभीं नन्ही सी बेटी बन के याद आता है तू
जितना याद आता है मुझ को, उतना तडपाता है तू
तुझ पे दिल कुर्बान

काबुलीवाला जो अपनी भावनात्मक दुनिया में डूबा हुआ है और एक बूढ़ा पठान जो गीतों में व्यक्त भावनाओं को सुनता है। बूढ़े भी अपने प्यारे देश की यादों से द्रवित हो जाते हैं। अपने देश, अपने लोगों से बढ़कर और क्या प्यारा हो सकता है? लेकिन काबुलीवाला के मन में आता है,क्या कभी हम हिंदुस्थान से अपने देश वापस जा पाएंगे? क्या हमारा हाल इस बूढ़े पठान जैसा होगा? क्या बुढ़ापा हमें पकड़ लेगा और एक दिन हमे मौत का सामना करना पडेगा? लेकिन हम अपने देश को कितना भी दूर क्यों न छोड़ दें, मौत हमारे देश में ही आनी चाहीए। कबालीवाला चाहता है कि हम अपनी आखिरी सांस उस मिट्टी में लें जिसमें हम पैदा हुए हैं...

छोडकर तेरी जमीन को दूर आ पहुंचे है हम
फिरभी है यहि तमन्ना तेरे जरों कि कसम
हम जहा पैदा हुये उस जगह हि निकले दम
ए मेरे प्यारे वतन

यह भावुक गीत अपने देश, अपने घर की विरह के साथ समाप्त होता है। काबुलीवाला दूर रह रही अपनी बेटी को याद करता है। वह अपनी जेब से एक कागज निकालता है और उस पर के अपनी बेटी के हाथों के निशान चूमता है।  काबुलीवाले को आने वाली अपनी बेटी की याद, उसका मनमुटाव हमें भी बेचैन कर देता है।सैकड़ों मील दूर का यह काबुलीवाला किसी दिन अपनी बेटी से, अपनी माँ से फिर मिलेगा! उसे देश की मिट्टी से मोह है, वह उस मिट्टी को छूएगा। हम आँख बंद करके उस गीत में मशगूल हो जाते हैं, मन उदास हो जाता है और आंखें जाने अनजाने नम हो जाती हैं। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, जत जि. सांगली ।

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