बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

पर्यावरण की रक्षा के लिए..!

पर्यावरण की रक्षा के लिए आज कई तरह के प्रोजेक्ट सुझाए जाते हैं, कुछ लोग अपनी छत पर गार्डन बना लेते हैं। पौधे लगाना और उनकी देखभाल करना सभी का कर्तव्य है। सबको तय करना है कि मुझे इस धरती को बचाना है, मुझे खुद को बचाना है, मुझे बीमारियों से छुटकारा पाना है और इसके लिए कोई योजना लागू करनी है। आज सबका ध्यान पर्यावरण पर केंद्रित है। आयुर्वेद में स्पष्ट कहा गया है कि यदि पर्यावरण का विनाश होगा, पर्यावरण का संतुलन बिगड़ेगा, यदि पर्यावरण में विषैले पदार्थ फैलेंगे तो मनुष्य को क्या क्या भोगना पड़ेगा। वृक्ष लगाओ, पर्यावरण बचाओ' के बोर्ड दिखाई दे रहे हैं, साथ ही अधिक से अधिक पेड़ लगाने, पेड़ों को न काटने, वाहनों, विशेष रूप से मोटरबाइकों का सांप्रदायिक रूप से उपयोग करें, स्मॉग को कम करने के लिए सभी उपायों की आवश्यकता है। लोगों ने इस पर गौर किया है। यह महसूस किया गया कि बिगड़ते पर्यावरण के कारण मानव जीवन कठिन हो गया है। समुद्र के पानी में प्लास्टिक के कण पाए गए।  कारखानों से निकलने वाले पानी, अपशिष्ट जल और जहरीले पदार्थों को पीने के पानी में जाने से रोकने के लिए व्यवस्था करने की आवश्यकता महसूस करते हुए, ऐसी व्यवस्था करने से पहले ही सारा पानी दूषित हो गया। न केवल जल दूषित हो गया है, बल्कि पृथ्वी पर पीने का पानी भी कम हो गया है। पीने के पानी के लिए हर ओर हाहाकार मच गया है। यदि आप 2-4 मील भटकते हैं और कहीं से पानी के एक-दो घड़े मिल जाते हैं, तो इसे पर्याप्त कहने का समय आ गया है।  इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि प्राप्त पानी शुद्ध है और इसमें कोई जहरीला पदार्थ नहीं है।

स्वर्ग से आने वाली गंगा नदी ने धरती को स्पर्श करने तक शुद्ध जल धारण किया था लेकिन फिर गंगा के पानी का रंग बदल गया, अब गंगा की सफाई का समय आ गया। गंगा के तट पर अनेक नगरों और कारख़ानों का विस्तार हुआ, उससे जो पाप निकले, उससे आने वाली गंदगी को गंगा को ही सोखना पड़ता है। गंगा ही नहीं, बल्कि कई नदियों का भी यही हाल हुआ है। नदी तल में उगे हुए वनस्पति, शैवाल ने नदी को रोकना शुरू कर दिया। नदी के किनारे बिना किसी नियम के मानव बस्तियों का अतिक्रमण कर लिया गया। छोटी-छोटी नदी-नाले भी इससे अछूते नहीं रहे। पानी के बाद खाने की भी बात होने लगी। वे कहने लगे कि यह खाओ और वह मत खाओ।  जिन देशों में सूरजमुखी, सोयाबीन आदि का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है, वहां से यह अफवाह फैलाई गई कि इन चीजों को खाने से सेहत ठीक रहेगी। भूमि प्रदूषित, जल प्रदूषित, वायु प्रदूषित।  कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए फसलों पर असीमित मात्रा में जहरीली दवाओं का छिड़काव किया जाने लगा। इससे अलग ही स्थिति पैदा हो गई। दूध के बारे में तो बात करने के लिए कुछ बचा भी नहीं है। वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड आदि की मात्रा बढ़ गई। नतीजतन, पर्यावरण को नुकसान होता रहा, पृथ्वी के वायुमंडल का तापमान बढ़ता जाता रहा। पृथ्वी के वायुमंडल की सुरक्षा कवच ओज़ोन परत में छेद होने लगे।  यह सोचा गया कि अगर उचित देखभाल नहीं की गई तो यह पूरा मामला हाथ से निकल सकता है। यह कहना नहीं है कि पृथ्वी का अंत निकट है या लोगों को डराने के लिए है, बल्कि यह सुझाव देने के लिए है कि छोटे से लेकर छोटे, अमीर से लेकर गरीब तक सभी के लिए ब्रह्मांड और पर्यावरण की देखभाल करने का समय आ गया है। हमारे चारों ओर, जो पाँच तत्वों से बना है।

हाल ही में ऐसी ही एक खबर पढ़ी- शहर के आसपास, गांव के आसपास पेड़ों की सुरक्षा की जाती है। वहां कई तरह के पौधे रोपे जाते हैं। पौधे एक छोटे से क्षेत्र में लगाए जाते हैं ताकि गांव के चारों ओर एक गोलाकार सड़क हो। जिस प्रकार धरती हरी शाल ओढ़ाती है, उसी प्रकार हमारे गाँव, शहर को हरी शाल ओढ़ा जाता है। मैं तो कहूंगा कि गांव ही नहीं, हर घर, हर समाज, सोसायटी को ऐसे ही पेड़ लगाने चाहिए, कोई दिक्कत नहीं है। इसके अलावा इमारतों के पिछे, बीच खुली जगह में पेड़ लगाने में कोई समस्या नहीं है। समाज ,सोसायटी में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कुछ दिनों तक वृक्षों की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपकर वृक्षों की रक्षा करना संभव है। फूल तोडऩे को हर कोई आतुर है, लेकिन ऐसा लगता है कि पेड़ की रक्षा, छंटाई, खाद डालने के लिए कोई आगे नहीं आता। यदि आपके क्षेत्र में पडे पलवार को खाद में बदल दिया जाए तो बाहर से अलग से खाद लाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसके अलावा, पौधों से आने वाली हवा पौधों को जैविक खाद देने से स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होगी।

किसी को अपनी छत पर गार्डन बनाने से लेकर कई तरह के प्रोजेक्ट्स का सुझाव दिया जाता है। लेकिन पेड़ लगाना और उसकी देखभाल करना सभी का कर्तव्य है। सभी को तय करना है कि मुझे इस धरती को बचाना है, मुझे खुद को बचाना है, मुझे बीमारियों से छुटकारा पाना है, जाति, धर्म, अमीर-गरीब का भेदभाव किए बिना, इसके लिए सभी को कोई न कोई योजना जरूर लागू करनी चाहिए। आज सबका ध्यान पर्यावरण पर केंद्रित है।  आयुर्वेद में स्पष्ट कहा गया है कि यदि पर्यावरण का विनाश होगा, पर्यावरण का संतुलन बिगड़ेगा, यदि पर्यावरण में विषैले पदार्थ फैलेंगे तो मनुष्य को क्या क्या भोगना पड़ेगा। हालांकि यह सब पहले भी कहा जा चुका है, लेकिन उस समय बताए गए लक्षण आज जैसे ही दिखाई दे रहे हैं। ऐसा लगता है कि भारतीय ऋषियों ने हजारों साल पहले पर्यावरण के महत्व को पहचाना और पेड़ों, नदियों, पहाड़ों आदि को देवत्व प्रदान किया और सुझाव दिया कि उनकी पूजा की जानी चाहिए, नुकसान नहीं होना चाहिए और उनकी रक्षा की जानी चाहिए। वर्षा, नदियों, वृक्षों, पर्वतों की पूजा करने के रीति-रिवाजों और उत्सवों का मूल यही है, पताके-तोरणों के निर्माण से वसंतोत्सव का आगमन आदि। कहने की आवश्यकता नहीं है कि होली के दिन पेड़ की एक शाखा को जलाना, खेत को जलाते समय पास के पेड़ की कुछ शाखाओं को काट देना पर्यावरण को नष्ट करता है। हर होली पर दो फुट लंबी डाली जलाने से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है। बहुत से लोग सुबह शहर के बाहर जाते हैं, गाँव के चारों ओर खुली जगहों पर, पहाड़ों पर जाते हैं, वहाँ उगे वन संसाधनों को काटते हैं, और शाम को अपने सिर पर लकड़ी का एक बड़ा बोझ लेकर वापस आते हैं। फिर उस लकड़ी को बेचो या उसका उपयोग अपने घर का चूल्हा जलाने के लिए करो। ऐसा करने से न केवल पेड़ कटते हैं, बल्कि अनजाने में औषधीय पौधे भी कट जाते हैं। इसे कहीं रुकना होगा। इसके बारे में शिक्षा संबंधितों को दी जानी चाहिए।

चंदन के पेड़ आदि के बारे में सौ से दो सौ रुपए देकर जानकारी ली जाती है और उन पेड़ों को काट भी दिया जाता है। गाँव से बाहर जाने, नदी के किनारे बैठने, पहाड़ों पर जाने के लिए छुट्टियों या सप्ताहांत पर यात्राओं का आयोजन किया जाता है। ऐसे समय में ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे पर्यावरण नष्ट हो, वृक्ष को हानि हो। पानी पीने के बाद प्लास्टिक की बोतलों को इधर-उधर न फेंकने जैसी बातों पर भी ध्यान देना जरूरी है। पहले मनुष्य के पास अधिक शक्ति थी और पहले के पौधों में भी अधिक शक्ति थी। पर्यावरण में परिवर्तन के कारण हल्के पौधों के औषधीय गुण कम हो गए हैं, उनकी शक्ति कम हो गई है, उनकी वीर्य कम हो गई है। पर्यावरण के महत्व को समझना और यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह खराब न हो।इसके लिए पर्यावरणविद् काफी प्रयास कर रहे हैं, अभियान चला रहे हैं। इससे कुछ नहीं निकला तो लगता है कि आज यह विचार करने की स्थिति आ गई है कि क्या हमें कोई कानून पास करना होगा। आयुर्वेद के अनुसार यदि हम शरीर को स्वस्थ रखना चाहते हैं, तन और मन को संतुलित रखना चाहते हैं तो पर्यावरण का उचित ध्यान रखना बहुत आवश्यक है, यह ध्यान में रखते हुए कि यह सब पौधों के बिना संभव नहीं है। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, जत जि. सांगली

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