रविवार, 5 फ़रवरी 2023

क्या आतंकवाद की आग पाकिस्तान को राख कर देगी?

पाकिस्तान के पेशावर शहर की एक मस्जिद में हुए आत्मघाती हमले में कम से कम 100 लोग मारे गए हैं। हालांकि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), एक कट्टरपंथी उग्रवादी समूह ने जिम्मेदारी से इनकार किया है, संदेह की सुई उसी के पास है। पाकिस्तान के दूसरे अफगानिस्तान बनने की ओर बढ़ने की आशंका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाहिर होने लगी है। वहीं, हमारे सबसे करीबी पड़ोसी होने के नाते भारत को भी सतर्क रहने की जरूरत है। टीटीपी आतंकवादी संगठन अफगानी तालिबान का पाकिस्तानी भाई है। बैतुल्ला महसूद ने 2007 में टीटीपी की स्थापना की थी। वर्तमान में नूर वली महसूद इसका नेता है। उसने सार्वजनिक रूप से अफगान तालिबान के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की है। यह कई छोटे पैमाने के सशस्त्र आतंकवादी संगठनों का शीर्ष संगठन है। पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में इस संगठन का इतना दबदबा है कि वहां के कुछ इलाकों में पाकिस्तान की सरकार के बजाय उनकी 'ताकत' है। 

बेशक, पाकिस्तान के पास आतंकवादियों के लिए पनाहगाह है। इसमें सबसे बड़ा हाथ पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आयएसआय (ISI) का है। टीटीपी के शक्तिशाली होने का एक और कारण खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सरकार की निष्क्रियता है।  हाल ही में, अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के कारण टीटीपी फिर से उभरा है। वहां अब टीटीपी का बड़ा भाई अफगान तालिबान निरंकुश सत्ता में है। उनकी मदद से टीटीपी की पाकिस्तान में तालिबान शासन स्थापित करने की योजना है। इस संगठन का हौसला इस हद तक बढ़ गया है कि उसने एक पर्चा जारी कर दिया है कि उसने जनवरी में कितने हमले किए हैं और उनमें कितने लोग मारे गए हैं। पत्रक में दावा किया गया है कि इसने 46 ऑपरेशन किए (ज्यादातर खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में), एक महीने में 49 मारे गए और 58 घायल हुए। 

पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता कोई नई बात नहीं है। इमरान खान की सरकार गिरने के बाद शाहबाज शरीफ के नेतृत्व में बनी सरकार में कई पार्टियां हैं। खान शरीफ सरकार पर तत्काल मध्यावधि चुनाव कराने का दबाव बना रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान भारी आर्थिक संकट में फंस गया है। पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक में विदेशी मुद्रा भंडार रसातल में डूब गया है। शरीफ ने खुद को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, यानी आईएमएफ के सामने उजागर कर दिया है, और अब उनके सामने एकमात्र विकल्प यह है कि आईएमएफ जो भी शर्तें तय करे और पोर्टफोलियो में कुछ और डॉलर इंजेक्ट करके कर्ज का पुनर्गठन किया जाए। पाकिस्तान के किसी भी समय दिवालिया होने की संभावना को देखते हुए तालिबान इस अराजकता का फायदा उठाने के लिए तैयार है। हालाँकि अफगानिस्तान में खेलों को फिर से शुरू करने की तैयारी चल रही है, लेकिन इन दोनों पड़ोसी देशों में स्थिति बिल्कुल अलग है।

तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा कर लिया, लेकिन दुनिया पर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। लेकिन पाकिस्तान में स्थिति अलग है। पाकिस्तान परमाणु संपन्न देश है। तालिबान जैसे चरमपंथी विचारक वहां सत्ता में आते हैं, और अगर ये परमाणु हथियार उनके हाथों में पड़ गए, तो आपदा आ जाएगी। परमाणु हथियारों से लैस एक आतंकवादी संगठन न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक दुःस्वप्न है। क्योंकि इन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल सिर्फ भारत पर ही नहीं होगा, ऐसी संभावना है कि ये परमाणु हथियार दुनिया भर के दूसरे आतंकी संगठनों को ब्लैक मार्केट में बेचे जाएंगे। एक तरफ यह मुद्दा उठाया जा रहा है कि पेशावर में हुआ धमाका महज संयोग है या कुछ और, जब पाकिस्तान के आईएमएफ से बातचीत चल रही है। 

फिलहाल इस उग्रवादी संगठन का प्रभाव क्षेत्र मुख्य रूप से अफगान सीमा पर है। यह संगठन भारत के सीमावर्ती इलाकों में ज्यादा मौजूद नहीं है। लेकिन प्रतिबंधित अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा, जमात-उद-दावा के नेता और उग्रवादी पाकिस्तान के हर प्रांत में मौजूद हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उनमें से कुछ गुप्त समर्थक हैं। तालिबान की बढ़ती ताकत को देखते हुए, इनमें से कई उग्रवादियों के उनके दलबदल करने की आशंका है। अगर ऐसा होता है तो तालिबान सीधे भारतीय सीमा में आ सकता है। अगर पाकिस्तान के परमाणु हथियार इस संगठन के हाथ लगे तो निश्चित रूप से इसका सबसे बड़ा खतरा भारत को होगा। इसलिए जरूरी है कि पाकिस्तान में हो रहे राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा घटनाक्रमों पर पैनी नजर रखी जाए। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली (महाराष्ट्र)

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