गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

अन्नदाता को पीछे न छोड़ें

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 121 देशों की रैंकिंग में हमारा देश 107वें स्थान पर पहुंच गया है। पिछले साल हम इस रैंकिंग में 101वें स्थान पर थे। बेशक, भूख सूचकांक में गिरावट जारी है। इससे भी अधिक गंभीर तथ्य यह है कि देश में कुपोषण की दर लगातार बढ़ रही है और यह अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है।आज भी दुनिया भर में लाखों लोग भूखे मर रहे हैं क्योंकि उनके पास पर्याप्त भोजन नहीं है। कई कुपोषित हैं क्योंकि उनका आहार स्वस्थ नहीं है। 16 अक्टूबर को हर जगह 'विश्व खाद्य दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे सभी लोगों को पर्याप्त और स्वस्थ भोजन मिले। इस वर्ष के विश्व खाद्य दिवस की थीम या अवधारणा है 'लीव्ह नो वन बिहाइंड’ यानी 'किसी को पीछे न छोड़ें' । जलवायु परिवर्तन संकट, कोरोना महामारी और रूस - यूक्रेन के बीच पिछले आठ महीनों से जारी युद्ध से वैश्विक खाद्य सुरक्षा को खतरा है।

जलवायु की समस्या चरम पर पहुंच गई है। इस वर्ष की विश्व खाद्य पुरस्कार विजेता महिला वैज्ञानिक डॉ.  सिंथिया रोसेनज़विग द्वारा निर्वाणी का संदेश है कि जब तक इन समस्याओं की गंभीरता को कम नहीं किया जाता तब तक दुनिया के लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान नहीं की जा सकती है। हालाँकि, भारत में जलवायु परिवर्तन विषय अभी भी  चर्चा में है। यहाँ कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का अभी भी कोई ठोस प्रमाण  दिख नहीं रहा है। यह मामला चिंताजनक है। जैसा कि हम आज देखते हैं, दुनिया भर में कृषि को प्रतिकूल मौसम की स्थिति से खतरा है।इंग्लैंड, अमेरिका के साथ-साथ इटली, फ्रांस समेत यूरोप के कई देश इस साल अभूतपूर्व सूखे का सामना कर रहे हैं। इन सूखा प्रभावित देशों में खाद्यान्न के साथ-साथ फलों और सब्जियों का उत्पादन बहुत कम हो गया है और वहां की खाद्य सुरक्षा खतरे में है। भारत तो पिछले तीन वर्षों से भारी बारिश और बाढ़ का सामना कर रहा है। प्रतिकूल मौसम के कारण इस देश में तीनों मौसमों की फसलें बर्बाद हो रही हैं। कोरोना के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक व्यापार में भी भारी बदलाव आया है।  अनेक देश की खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई देश कृषि उत्पादों के निर्यात के बारे में हाथ पिछे ले  रहे हैं। वे देश में ही पर्याप्त भंडार बनाने की प्रवृत्ति रखते हैं।  इससे आयात और निर्यात में बड़ा बदलाव आया है और इसका असर कई देशों पर भी पड़ रहा है। भारत ने हाल ही में खाद्य सुरक्षा चिंताओं के कारण गेहूं और टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। इसी तरह के निर्णय अन्य कृषि निर्यातक देशों द्वारा लिए गए हैं।

नतीजतन, खाद्य संकट न केवल बढ़ा है, बल्कि संबंधित कृषि आधारित उद्योग भी खतरे में आ गए हैं।भोजन मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकता है।  सभी को पर्याप्त और स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। यह भी सच है कि देश के सभी लोगों को एक दिन में दो वक्त के भोजन के लिए पर्याप्त भोजन मिलना चाहिए और कोई भी पीछे नहीं रहना चाहिए।  लेकिन भारत देश में अन्नदाता पर भुखा सोने का समय आ गया है। वर्तमान अत्यंत प्रतिकूल स्थिति में भी, इस देश का अन्नदाता खाद्यान्न और अन्य कृषि उत्पादों के उत्पादन के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। हम निर्यात के जरिए दुनिया की भूख मिटाने के लिए देश की जनता के साथ काम कर रहे हैं। ऐसे में वह भूखा न रहें, जिंदा रहें, सरकार को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए। विश्व के 90% छोटे किसानों का खाद्यान्न उत्पादन का 80% हिस्सा है। भारत में, 85 प्रतिशत किसान छोटे और सीमांत भूमिधारक हैं, और उनमें से अधिकांश बहुत ही गरीब जीवन जीते हैं।  अपने देश के साथ-साथ विश्व की खाद्य सुरक्षा को अक्षुण्ण रखने वाले इस अन्नदाता को पीछे न छोड़ें।

-मच्छिंद्र ऐनापुरे, मुक्त पत्रकार

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