शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

इंटरनेट, मोबाइल की लत में वृद्धि

भारत में बच्चों में इंटरनेट और मोबाइल का उपयोग बढ़ा है।  इसलिए उनके भविष्य को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है।  इसलिए बच्चों में मोबाइल फोन की लत चर्चा का विषय बन गई है। कोविड के जमाने में लग गई इंटरनेट, मोबाइल की आदत, अब कोविड खत्म भी हो गई  तो जाने का नाम ही नहीं ले रही है। अब तो बच्चों के अभिभावक भी परेशान हैं। अब उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि बच्चों को इससे बाहर कैसे निकलें। बच्चों के पास इंटरनेट, मोबाइल मैच्योरिटी नहीं है।  मोबाइल फोन को कैसे संभालना है, क्या देखना है और क्या नहीं देखना है, इसकी उचित जानकारी न होने के कारण कई समस्याएं पैदा होने लगी हैं। किशोर विशेष रूप से सोशल मीडिया के साथ-साथ नए तकनीकी तरीकों की ओर आकर्षित होते हैं। इस अँडीक्शन की शुरुआत इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध चीजों के प्रति आकर्षित होने की आदत है। ये बच्चे बाद में इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करने लगते हैं और यह लत में बदल जाता है। लेकिन फिर इससे बच्चों को वापस आना या  लाना मुश्किल हो जाता है। इस लत को इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर कहा जाता है।  बेशक यह विकार सिर्फ बच्चों तक ही सीमित नहीं है बल्कि कुछ हद तक वयस्कों में भी देखा जा सकता है।

जैसे, इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर एक व्यापक घटना है।  इनमें साइबरसेक्सुअल, साइबर संबंध, इंटरनेट बाध्यताएं, सूचना अधिभार, और इंटरैक्टिव कंप्यूटर गेम, इंटरनेट की लत शामिल हैं।  व्यसन विकार के लक्षणों में तनाव, असामान्य व्यवहार, सामाजिक वापसी, पारिवारिक संघर्ष, तलाक, शैक्षणिक विफलता, नौकरी छूटना और कर्ज शामिल हैं। आम तौर पर, जो लोग अवसाद, अकेलापन, सामाजिक चिंता, भावनात्मक विस्फोट, व्याकुलता, चिड़चिड़ापन, फोन लेने के बाद आने वाला तनाव और चिंता का अनुभव करते हैं, उनमें स्मार्टफोन या इंटरनेट की लत विकार हो सकता है। साथ ही इंटरनेट के उपयोग का स्थान, इंटरनेट के उपयोग का समय, सहकर्मी संबंध, पालन-पोषण की शैली भी इस लत से संबंधित हैं और ऐसी चीजें इस लत को बढ़ाने का कारण बनती हैं। डॉक्टरों के अनुसार, इंटरनेट की लत विकार से पीड़ित बच्चों के विकास, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। एक अन्य अध्ययन के अनुसार, इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर से प्रभावित व्यक्तियों या बच्चों की मस्तिष्क गतिविधि ड्रग और अल्कोहल की लत के अनुभव के समान है। इसका मतलब यह है कि इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर वाले लोग उसी तरह से व्यसन का अनुभव करते हैं जैसे अन्य व्यसनी। इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर या टेक्नोलॉजी एडिक्शन अलग हैं।  जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर में साइबरसेक्सुअल की लत, साइबर संबंध, इंटरनेट की अनिवार्य जानकारी अधिभार और इंटरैक्टिव कंप्यूटर गेम शामिल हैं। इसके साथ ही ऑनलाइन जुआ, नीलामियां भी शामिल हैं।  संक्षेप में कहें तो जुए की तरह ही टेक्नोलॉजी भी लोगों के दिमाग पर असर करती है। यह लत हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकती है।  एक अध्ययन से पता चला है कि फेसबुक, इंस्टाग्राम का इस्तेमाल करने से दिमाग पर ऐसा कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन अन्य लेन-देन में इंटरनेट या सोशल मीडिया के संकेतों जितनी तेजी से अन्य संकेतों को पहचानने में थोड़ा समय लगता है। यानी व्यावहारीक रजिस्ट्रेशन की तुलना में सोशल मीडिया का रजिस्ट्रेशन तेजी से होता है।  इसका परिणाम  दैनिक जीवन में होता है। बच्चों के मामले में पढ़ाई याद करने की आदत छूट जाती है और मन एकाग्र नहीं हो पाता।  इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर को पहचानने के लिए उसकी आदतों में आए बदलाव पर ध्यान देना जरूरी है।  बेशक, इस लत के लक्षणों को समझना और पहचानना थोड़ा मुश्किल होता है।  क्योंकि वह नहीं जानता कि तकनीक ने उसके जीवन को कैसे प्रभावित किया है। अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग परिणाम अनुभव करते हैं। हालाँकि, कुछ परिणामों को मोटे तौर पर समझा जा सकता है। इनमें मिजाज, इंटरनेट और डिजिटल मीडिया का निरंतर उपयोग, इस पर नियंत्रण की कमी, बाहरी खेलों से बचना, फोन को दूर रखने या लंबे समय तक रखने पर चिड़चिड़ापन, स्कूल की उपेक्षा, पढ़ाई, अवसाद, अनिद्रा, या नींद के दौरान हिलना-डुलना इस विकार में कुछ लक्षण पाए जाते हैं।
तो इस इंटरनेट की लत का समाधान क्या है? ऐसे में लक्षण क्या हैं, इसकी प्रकृति क्या है, व्यक्ति या बच्चे कैसा व्यवहार कर रहे हैं, उनके स्वभाव में क्या बदलाव आ रहे हैं, इसका अवलोकन कर कुछ उपाय करना संभव है। होशपूर्वक अपनी आदतों को बदलना आवश्यक है।  मोबाइल, लैपटॉप आदि  केवल उतना ही उपयोग करें जितना आवश्यक हो।  हो सके तो देर रात तक मोबाइल फोन के इस्तेमाल से बचें। माता-पिता को बच्चों को मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से रोकना चाहिए, चाहे वे कितने भी गुस्से में हों।  साथ ही इस बात को ध्यान में रखते हुए रोकथाम आवश्यक है कि ऑनलाइन गेम, जुआ, पोर्नोग्राफी, अनावश्यक वायरल वीडियो आदि से बच्चों को धोखा दिया जा सकता है।  मोबाइल के अलावा अन्य उपकरणों के उपयोग को प्रोत्साहित करना माता-पिता का कर्तव्य है। यदि आप अपने मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा रखना चाहते हैं, तो यह जांचना आवश्यक है कि क्या आप इंटरनेट के आदी हैं और यदि ऐसा है, तो होशपूर्वक इससे छुटकारा पाएं। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह न केवल हमारे स्वास्थ्य बल्कि परिवार के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करेगा।  इसलिए इसका इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, मुक्त पत्रकार

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