रविवार, 9 अक्तूबर 2022

पशुधन को भी बीमा संरक्षण की जरूरत

चारे, पशुखाद्य और मजदूरी के दाम जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं, देश में पशुपालक संकट में आते दिख रहे हैं। दूध के दाम कम होने से डेयरी कारोबार घाटे में चल रहा है। ऐसे में जानवरों में 'लम्पी स्कीन' की बड़ी समस्या आई है। देश में यह बीमारी तेजी से फैल रही है।  'लम्पी स्कीन' से देश में एक लाख से ज्यादा जानवरों की मौत हो चुकी है, जबकि महाराष्ट्र राज्य में यह संख्या एक हजार के करीब है। राजस्थान में सबसे ज्यादा पांच हजार जानवरों की मौत हुई है।  मध्य प्रदेश में अब तक सौ से ज्यादा जानवरों की मौत हुई है।

महाराष्ट्र के नगर जिले के लोहगांव के जनार्दन धेरे की 22 दुधारू गायें आठ दिन में मर चुकी हैं और उनकी गौशाला खाली हो गई है। इस घटना से न केवल धेरे परिवार को दुख पहुंचा है, बल्कि यह उनके लिए एक बहुत बड़ा आर्थिक आघात भी है। गायों की मौत के कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है।  हर साल मानसून के दौरान, कई पशुधन जैसे गाय, भैंस, बैल, बकरी और भेड़ नदियों और नहरों की बाढ़ में बह जाते हैं।  कभी-कभी आग और बिजली गिरने से मवेशियों के जलने की खबरें आती रहती हैं। बेशक, चाहे वह  'लम्पी स्कीन' जैसी संक्रामक बीमारी हो या प्राकृतिक आपदा, जानवर अचानक मर जाते हैं।घटसर्प, मुंहपका-खुरपका रोग और ब्लैक क्वार्टर जैसी सामान्य बीमारियों से भी पशु मर जाते हैं और उनके इलाज में भी काफी पैसा खर्च होता है। पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे किसानों के लिए यह बड़ा झटका है।  इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, पशुधन बीमा की आवश्यकता दृढ़ता से महसूस की जाती है। पशुपालकों के साथ-साथ किसान संगठन भी पशुधन बीमा की मांग कर रहे हैं और केंद्र और राज्य सरकारों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। प्रदेश में 2006-07 से पशुधन बीमा योजना प्रायोगिक आधार पर क्रियान्वित की गई थी। 2016 में इस योजना का पूरे महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से विस्तार किया गया। योजना का उद्देश्य पशुओं के जीवन के नुकसान के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान के लिए तत्काल मुआवजा प्रदान करना, साथ ही पशु उत्पादन में गुणात्मक सुधार लाना था। लेकिन इस योजना के प्रति शुरू से ही धन की कमी और सरकार-प्रशासन की उदासीन नीति के कारण यह योजना पिछले चार-पांच वर्षों से ठप पड़ी है। पशुधन बीमा योजना के लिए कोई सरकारी धन नहीं है, या है भी, बीमा कंपनियां पशुधन का बीमा करने के लिए तैयार नहीं हैं, यदि बीमा लिया जाता है, तो कंपनी द्वारा दावों को मंजूरी नहीं दी जाती है जब किसान अचानक जानवर  मृत्यु के बाद दावा प्रस्तुत करते हैं । ऐसे दुष्चक्र में फंसकर पशुधन बीमा योजना बंद हो गई।  वास्तव में, पशुधन स्वास्थ्य बीमा और पशुधन बीमा दोनों की अब आवश्यकता है।
पशुओं के बीमार पड़ने पर पशुधन स्वास्थ्य बीमा को मुफ्त उपचार प्रदान करना चाहिए (जैसे मनुष्यों में मेडिक्लेम पॉलिसी)। यह सवाल किया जा सकता है कि सरकारी पशु चिकित्सालयों में मुफ्त इलाज उपलब्ध होने पर स्वास्थ्य बीमा की आवश्यकता क्या है। लेकिन कई बार सरकारी पशु चिकित्सालयों में कुछ बीमारियों के लिए दवाएं उपलब्ध नहीं होती हैं।  ऐसे में पशुपालन को बाहर से दवा लाने को कहा जाता है।इनमें से कई दवाएं महंगी भी होती हैं, जो कुछ पशुपालकों के लिए उन्हें वहनीय नहीं बनाती हैं।  स्वास्थ्य बीमा द्वारा इतनी महंगी दवाओं की प्रतिपूर्ति की जा सकती है। साथ ही, जैसा कि मनुष्यों में जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, पशुपालन के क्षेत्र में जेनेरिक दवाएं भी पशुपालन के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। यदि पशु का स्वास्थ्य बीमा है, तो पशु प्रजनक निजी क्लीनिकों में पशुओं का उपचार करवा सकता है।पशुधन बीमा में किसी कारणवश पशुओं की आकस्मिक मृत्यु होने पर पशुपालकों को मुआवजा मिल सकता है।  फसल बीमा हो या पिछला पशुधन बीमा, किसानों के लिए निजी कंपनियों से न्याय पाना लगभग असंभव है। ऐसे में सरकार को एक कंपनी स्थापित करनी चाहिए और पशुधन को सुनिश्चित बीमा कवर प्रदान करना चाहिए।
-मच्छिंद्र ऐनापुरे, मुक्त पत्रकार

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