रविवार, 9 अक्तूबर 2022

बिना ज्ञान के जहर का प्रयोग खतरनाक

अमेरिका, जापान, चीन के बाद भारत कीटनाशकों (कीटनाशकों, कवकनाशी, शाकनाशी और पौधों के विकास नियामकों) के उपयोग में चौथे स्थान पर है। दो साल पहले, हमारी वार्षिक कीटनाशक खपत 60,000 मीट्रिक टन थी, जो अब काफी बढ़ गई है।बदलते मौसम के दौरान फसलों पर कीटों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है।  इनके नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक है।  लेकिन पिछले कुछ सालों से देश में कीटनाशकों का अनियंत्रित प्रयोग जारी है। इसलिए इनके इस्तेमाल से होने वाले फायदे कम होने की बजाय नुकसान बढ़ते ही जा रहे हैं।

कीटनाशकों के अनियंत्रित प्रयोग से कीड़ों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ रही है, कीटों का प्रभावी नियंत्रण संभव नहीं है।  कैंसर, शारीरिक और मानसिक विकलांगता और यहां तक ​​कि मौत भी किसानों और खेत मजदूरों के स्वास्थ्य पर खतरनाक दुष्प्रभाव दिखा रही है। फलों और सब्जियों से लेकर खाद्यान्न तक, कीटनाशकों के स्तर के कारण उपभोक्ताओं को कई स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है।

कई विद्वानों की रिपोर्टों से यह स्पष्ट है कि कीटनाशकों के अनियंत्रित उपयोग के कारण मिट्टी-जल-पर्यावरण प्रदूषण होता है। देश में कीटनाशकों के निर्माण, पंजीकरण, बिक्री और उपयोग पर कोई ठोस कानूनी नियंत्रण नहीं है। इस संबंध में जो भी कानून हैं, वे पूरक नहीं हैं, उनमें कई खामियां हैं। इन सभी पहलुओं को हाल ही में एमएपीपीपी (महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ पेस्टिसाइड पर्सन) और पैन इंडिया (कीटनाशक एक्शन नेटवर्क) द्वारा एक कार्यशाला के माध्यम से उजागर किया गया है। कीटनाशकों को नियंत्रित करने के लिए देश में 'कीटनाशक अधिनियम - 1968' है।  इस अधिनियम से पहले, यह माना जाता था कि देश में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशकों को पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं है।

इसे 'डीम्ड टू बी रजिस्टर्ड' कहा जाता है।  उस समय बहुत कम कीटनाशकों का उपयोग किया जाता था, और यह उस समय एक अस्थायी व्यवस्था थी क्योंकि देश में कोई कीटनाशक पंजीकरण प्रक्रिया नहीं थी।लेकिन 1968 के अधिनियम के लागू होने के बाद, इस अधिनियम के तहत देश में उपयोग किए जाने वाले सभी कीटनाशकों का पंजीकरण अनिवार्य है, लेकिन कुछ कीटनाशकों का उपयोग अभी भी पंजीकरण के बिना किया जा रहा है। इसका देश में समय-समय पर विरोध होता रहा है।  लेकिन किसी सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।  प्रस्तावित कीटनाशक प्रबंधन विधेयक-2020 में 'डीम्ड टू बी रजिस्टर्ड' का प्रावधान अधिक गंभीर है।

 बेशक, भले ही यह विधेयक पारित हो और एक नए कानून में परिवर्तित हो जाए, कुछ कीटनाशकों को पंजीकरण की आवश्यकता नहीं समझा जाएगा।  कानून के तहत पंजीकरण करते समय कीटनाशकों को पूरी जानकारी के साथ जमा करना होता है। किस फसल पर किस कीट के लिए किस प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग करना है, किस भाग के लिए उसकी मात्रा का प्रयोग करना है तथा विषैलापन होने पर विषनाशक के प्रयोग के बारे में समस्त जानकारी ली जाती है। इतना ही नहीं सूचना का सत्यापन कर संबंधित कीटनाशक का पंजीयन किया जाता है।  इस समय देश में कुछ कीटनाशकों का इस्तेमाल बिना इन सब जानकारियों के किया जा रहा है और यहां हमारा नुकसान हो रहा है। पांच साल पहले, नकली कीटनाशकों के अनियंत्रित उपयोग ने महाराष्ट्र राज्य में 100 किसानों और खेत मजदूरों की जान ले ली थी।  प्रदेश में जहर का यह दौर अभी भी जारी है। आज भी कृषि सेवा केंद्र के चालक कीटनाशकों के प्रयोग को लेकर किसानों के गुरु हैं।  कुछ कृषिविद प्रतिबंधित कीटनाशकों की सलाह देते हैं।  प्रत्येक कीटनाशक का प्रयोग लेबल के दावों के अनुसार किया जाना चाहिए, यह अनिवार्य भी है।

लेकिन इन्हें कंपनियों और विक्रेताओं द्वारा व्यापक रूप से दुर्लक्ष किया जाता है। देश में इस्तेमाल होने वाले सभी कीटनाशकों की एक बार फिर से जांच करने की जरूरत है।  नियमानुसार कोई भी कीटनाशक बिना पंजीकरण के बाजार में प्रवेश नहीं करना चाहिए। जिन कीटनाशकों के प्रति कीड़ों ने प्रतिरोध विकसित कर लिया है और जिनके लिए कोई प्रतिरक्षी उपलब्ध नहीं है, उन्हें उपयोग से वापस ले लिया जाना चाहिए। प्रतिबंधित, मिलावटी कीटनाशकों को भी बाजार में नहीं आने देना चाहिए।  कीटनाशकों के सुरक्षित उपयोग के बारे में किसानों के बीच व्यापक जागरूकता की भी आवश्यकता है।  नया कीटनाशक कानून बनाते समय पुराने कानून की सभी खामियों को दूर किया जाए।-मच्छिंद्र ऐनापुरे, मुक्त पत्रकार


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