बुधवार, 30 नवंबर 2022

स्मार्टफोन के इस्तेमाल के खतरे

कैंसर एक खतरनाक बीमारी है जो हमारी बदलती जीवनशैली की देन है। बढ़ती जनसंख्या हमारे देश के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है। इस आबादी की बढ़ती भूख को पूरा करने के लिए खाद्य उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है, इस पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। यद्यपि हरित क्रांति ने हमें खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता दी है (20 प्रतिशत लोगों को भोजन नहीं मिलता, यह एक अलग मुद्दा है)  लेकिन इसने हमें कई बीमारियाँ भी दी हैं। देशी किस्मों को हटाकर हमने संकर किस्मों को अपनाया है। आधुनिक मशीनों, तंत्रों और औजारों के कारण मेहनत का काम भी कम हो गया है। लेकिन मानसिक तनाव बढ़ गया है।  इस कारण हमारा शरीर एक अलग लाइफस्टाइल जी रहा है। इसके चलते आंतरिक शरीर की साधना को हल्के में लिया जा रहा है। धन प्राप्ति के नाम पर शरीर की उपेक्षा की जा रही है। इस बीच स्मार्टफोन जैसी चीजों ने हमारी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करते हुए पूरी दुनिया पर कब्जा कर लिया है। किराने के सामान से लेकर बड़े सामान की खरीद-बिक्री से लेकर नौकरी तक, छोटे-बड़े व्यावसायिक प्रोजेक्ट आज मोबाइल पर पूरे हो रहे हैं। जाहिर है, स्मार्टफोन का इस्तेमाल अनिवार्य हो गया है।  लेकिन यह अनिवार्यता हमें खतरे में डाल रही है, इस पर भी अब ध्यान देने की जरूरत है। यह कहने का समय आ गया है कि जितना हो सके स्मार्टफोन को दूर रखना बेहतर है, खासकर बच्चों से। 

मुंबई में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी-आईआईटी) के प्रोफेसर गिरीश कुमार ने निष्कर्ष निकाला है कि स्मार्टफोन के अत्यधिक उपयोग के कारण किशोरों में ब्रेन कैंसर की दर में 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सेलफोन में विकिरण के खतरे के विषय पर अपना शोधनिबंध प्रस्तुत किया है। इसमें उन्होंने स्मार्टफोन के छिपे खतरों के बारे में बताया है। यह कहते हुए उन्होंने हमसे रिक्वेस्ट भी की है कि हम हर दिन 30 मिनट से ज्यादा स्मार्टफोन का इस्तेमाल न करें। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने उन्नत तकनीक के अत्यधिक उपयोग के गंभीर परिणामों के बारे में एक रिपोर्ट भी केंद्र सरकार को सौंपी है और सरकार के स्तर पर जन जागरूकता और उपचारात्मक उपायों का भी अनुरोध किया है।

आज की युवा पीढ़ी इस स्मार्टफोन के बिना नहीं रह सकती है। इसके अत्यधिक उपयोग के कारण कुछ लोगों में मोबाइल फोबिया विकसित होने के उदाहरण हैं। मोबाइल फोन के कारण मानसिक बीमारियों से पीड़ित मरीजों को विशेष मोबाइल रिकवरी सेंटर की जरूरत पड रही है। कुछ ने मोबाइल फोन के लिए आत्महत्या की है। कुछ ने अपने ही माता-पिता को मार डाला है। हम यह निष्कर्ष सुनते आ रहे हैं कि बच्चे अत्यधिक मोबाइल गेम खेलने के कारण चिड़चिड़े हो गए हैं या हो रहे हैं। हालांकि, यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि इसे नजरअंदाज करने से हमें भविष्य में भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। अभिभावकों को अपने बच्चों पर लगाम कसनी चाहिए, लेकिन स्कूलों, कॉलेजों और अखबारों, टीवी चैनलों और सरकारी स्तर पर भी जागरूकता पैदा करने की जरूरत है। लगातार स्मार्टफोन के इस्तेमाल से किशोरों में ब्रेन कैंसर के मामलों में 400 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा, मोबाइल फोन से निकले वाले विकिरण से  युवाओं में डीएनए पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है, और मस्तिष्क क्षति के कारण अनिद्रा, डिमेंशिया और कंपकंपी जैसी बीमारियां हो सकती हैं, गिरीश कुमार ने कहा। क्‍योंकि बच्‍चों की खोपड़ी नाजुक होती है और ये रेडिएशन उनमें आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। मोबाइल फोन से निकलने वाला रेडिएशन पशु और पौधों के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। बेशक आधुनिक व्यवस्था आज हमारे काफी करीब हो गई है। कभी-कभी हमारे पास उनका उपयोग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। हालांकि यह बात अभी सच है, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। हम यह भी जानते हैं कि किसी भी चीज की अति हानिकारक होती है। आज दुनिया को दूरसंचार क्षेत्र द्वारा करीब लाया गया है।  इसमें बड़ी प्रगति हुई है।  यह तकनीक अभी भी विकसित की जानी है। इसलिए इससे इंसान को फायदा होगा, लेकिन फिर भी इससे होने वाले खतरों को नजरअंदाज किए बिना आगे चलते रहना गंभीर समस्या झेलना है। 

स्मार्टफोन के आने से दुनिया हमारे हाथों में आ गई है। हमें नहीं पता कि यह तकनीक हमें कहां ले जाएगी। बीस साल पहले किसी को विश्वास नहीं होता था कि हम कहीं से भी संचार कर सकते हैं। बीस साल पहले किसी को विश्वास नहीं होता था कि हम कहीं से भी संचार कर सकते हैं। लेकिन आज हम न केवल बात कर सकते हैं, बल्कि अब हम एक दूसरे को देख भी सकते हैं। यह कल्पना करना असंभव है कि यह प्रगति मनुष्य को किस स्तर तक ले जाएगी। लेकिन हम जहां भी हैं, वहां से हमारा काम भी हो रहा है। तो अब हमें ऑफिस जाकर काम करने की भी जरूरत नहीं है। इसलिए यह जितना जरूरी है, वास्तव में इसके खतरे भी उतने ही बड़े हैं । इस पर ध्यान देने से इन्हें कैसे कम किया जा सकता है, इस पर अध्ययन की जरूरत है। यह भी कहा जाता है कि वाईफाई क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए जोखिम हैं। जिस तरह पैसिव स्मोकिंग एक्टिव स्मोकिंग से ज्यादा खतरनाक है, उसी तरह नेट, फोन किरणों के भी खतरे हैं। किसी चीज के फायदे को ज्यादा तवज्जो दी जाती है, लेकिन उसके खतरों को भी उतनी ही गंभीरता से देखने की जरूरत है। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली ।महाराष्ट्र।


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