मंगलवार, 29 नवंबर 2022

रिश्ता दोस्ती का ...

आग लगी थी मेरे घर में सब जानने वाले आए।

 हाल पूछा और चले गए ।

एक सच्चे दोस्त ने पूछा," क्या क्या बचा है....।"

 मैने कहा, " कुछ नहीं सिर्फ मैं बच गया हूं।"

 उसने गले लगाकर कहा, ".. तो फिर जला ही क्या है?"

जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति कई रिश्ते जोड़ता है। कुछ रिश्ते जन्म के साथ तय हो जाते हैं तो कुछ रिश्ते जिंदगी जीते वक्त  जुड़ जाते हैं। इन्हीं में से एक रिश्ता है दोस्ती का, जो हर किसी की जिंदगी में बहुत मायने रखता है। दोस्ती हमेशा प्यार से बेहतर होती है। पुराणों, इतिहास में ऐसी पवित्र और अटूट मित्रता के अनेक उदाहरण मिलते हैं। द्वारकाधीश श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता हो या महाभारत में दुर्योधन और कर्ण की मित्रता,राम एवं सुग्रीव की दोस्ती, पृथ्वी राज चौहान और चन्द्रवरदायी की मित्रता, महाराणा प्रताप और उनके घोड़े चेतक की दोस्ती , यह पवित्र बंधन से अमर हो गई है। इतिहास पर नज़र डालें तो हिंदवी स्वराज्य के दूसरे छत्रपति संभाजी महाराज और कवि कलश के बीच की गहरी दोस्ती आँखों के सामने खड़ी होती है। उनके बीच यह दोस्ती आखिरी सांस तक बनी रही। अकबर-बीरबाल की मित्रता, तेनालीराम और महाराज कृष्णदेवराय की मित्रता भी इसी श्रेणी में आती है। ये सभी दोस्त इतिहास में अपना नाम लिखकर चले गए। आज के आधुनिक समय में दोस्ती का स्वरूप, उसकी परिभाषा, इस रिश्ते का संदर्भ सब बदल गया है। लाइफस्टाइल, फैशन, सोशल मीडिया का आज इंसान के दिमाग पर  और बदले में दोस्ती के मापदंड पर भी काफी प्रभाव पड रहा है ।  दोस्तों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन यह दोस्ती असली दोस्ती है या नहीं इसका जवाब देना संभव नहीं है। आजकल फेसबुक पर कई लोगों की फ्रेंड लिस्ट में हजारों फ्रेंड्स होते हैं। उसकी मित्र सूची हमेशा के लिए भरी हुई प्रतीत होती है;  लेकिन इनमें से कितने सच्चे दोस्त हैं यह बता पाना मुश्किल है। अवसाद की गहराइयों में फंसने के बाद अपने विचार किससे व्यक्त करें, सफलता के बारे में किसे बताएं? ऐसा सवाल वो भी पूछते हैं जिनकी फ्रेंड लिस्ट में हजारों फ्रेंड्स होते हैं। जब दोस्तों की वाकई जरूरत होती है तो कोई भी दोस्त उनका साथ देने के लिए आगे नहीं आता और यही उनकी सबसे बड़ी त्रासदी बन जाती है। दुनिया भले ही आधुनिक तकनीक के कारण जेब में आ गई हो, लेकिन हर रिश्ता सोशल मीडिया तक ही सीमित रह गया है। 'फ्रेंडशिप डे' सिर्फ नाम के लिए रह गया है। सब कुछ सफलता- असफलता, आर्थिक लाभ, स्वार्थ के तराजू में तौला जा रहा है। ऐसे में यह सोचना जरूरी है कि आपके फेसबुक पर कितने दोस्त हैं, आप कितने व्हाट्सएप ग्रुप पर हैं, बजाय इसके कि आपके जीवन में कितने करीबी दोस्त हैं। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें