सोमवार, 7 नवंबर 2022

गुजरात में बीजेपी का 150 का ध्यान, लेकिन 'आप' भी सावधान!

गुजरात विधानसभा चुनाव में बमुश्किल एक महीना दूर है।  राज्य में 1995 से सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी को इस साल आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस ने भी चुनौती दे दी है। हालांकि यह एक मध्यम आकार का राज्य है, यह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का गृह भी राज्य है।  इसलिए यहां के नतीजे का असर देश की राजनीति पर पड़ेगा। करीब तीन दशक से गुजरात में बीजेपी और कांग्रेस के बीच ऐसा ही मैच चल रहा था।  लेकिन इस साल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी राज्य में माहौल बनाने में कामयाब रही है। पंजाब की तरह उन्होंने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की भी घोषणा की।  केजरीवाल ने पत्रकार इसुदान गढ़वी के नाम की घोषणा की है। राजनीति में संदेश मायने रखता है। इसलिए अगर आम आदमी पार्टी जीतने में विफल रहती है, तो राष्ट्रीय राजनीति में उसका मार्गक्रमण इस बात पर निर्भर करेगा कि वह कितनी सीटें जीतती है। वहीं बीजेपी पिछली बार यानी 2017 के विधानसभा चुनाव में 99 सीटें जीतने में सफल रही थी। बेशक, 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा में भाजपा ने बहुमत हासिल किया था। लेकिन केंद्र में सत्ता में रहते हुए तीन अंकों की सीटें जीतने में पार्टी की विफलता उनके लिए एक झटका थी। उस समय पटेल आरक्षण आंदोलन जोरों पर था। प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग की भी घटना हुई थी। भाजपा को इसका दंश महसूस हुआ, नतीजतन, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार का सूत्र अपने हाथ में ले लिया, तब जा के भाजपा सत्ता की नाव को पार करने में सफल रही। इस साल स्थिति अलग है।

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे समय तक गुजरात का नेतृत्व किया। 1987 में, पार्टी संगठन में जिम्मेदारी निभाते हुए, उन्होंने भाजपा को अहमदाबाद नगर निगम जीत कर दिया था। अब भी बीजेपी का भरोसा सिर्फ मोदी पर है। बेशक, पार्टी राज्य में गहराई से संगठित है। पिछली बार बीजेपी की सीटें कम हुई थी, उसे 49 फीसदी वोट मिले थे।  इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । कांग्रेस के पास भी  30 से 35 प्रतिशत हुक्मी वोट हैं। पिछली बार तो विधानसभा में कांग्रेस को करीब 42 फीसदी वोट मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने राज्य की सभी 26 लोकसभा सीटों पर 60 फीसदी वोट हासिल कर जीत हासिल की थी। उस वक्त भी कांग्रेस के पास 30 फीसदी वोट थे।  मतलब है कि कांग्रेस के पास एक गारंटीकृत मतदाता है। बीजेपी के पास भी पारंपरिक वोटर है। इन दोनों के बीच लड़ाई में विधानसभा में सीटों की गणना इस बात पर निर्भर करेगी कि आम आदमी पार्टी किसके वोट ले लेगी। शहरी इलाकों में बीजेपी की स्थिति बेहतर है। राज्य में 60 से 65 शहरी निर्वाचन क्षेत्र हैं। इनमें से ज्यादातर सीटें पिछली बार बीजेपी ने 60 फीसदी से ज्यादा वोटों से जीती थीं। इसलिए, अगर आम आदमी पार्टी शहरी सीटों पर कांग्रेस के वोट लेती है, तो भाजपा को और अधिक लाभ होगा। लेकिन अगर आप बड़े पैमाने पर बीजेपी की वोटों को  अपनी ओर मोड़ने में सफल होती है, तो शहरी क्षेत्रों में परिणाम प्रभावित होंगे। नहीं तो यह तस्वीर है कि शहरी सीटों पर बीजेपी को रोकना मुश्किल होगा।

राज्य में बीजेपी 27 साल से सत्ता में है।  इस साल महंगाई का मुद्दा प्रचार के केंद्र में है। इसके अलावा बेरोजगारी की समस्या भी गंभीर है। चूंकि भाजपा सत्ता में है, इसलिए विपक्ष इन दोनों मुद्दों पर उसे  कैची में पकड रही है। ऐसे में बीजेपी को मोदी के नेतृत्व में चुनाव का सामना करना पड़ रहा है। पिछले पांच वर्षों में राज्य में भाजपा के तीन मुख्यमंत्री रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल मितभाषी हैं। भाजपा ने पहली बार विधायक बनने के बावजूद पटेल समुदाय के वोट बैंक को संभालने के लिए उन्हें राज्य सौंप दिया। उनके नेतृत्व में बीजेपी ने स्थानीय चुनावों में जीत हासिल की है। बेशक, इस समय यह कहना मुश्किल है कि नतीजे आने के बाद भूपेंद्रभाई को दोबारा मुख्यमंत्री का पद मिलेगा या नहीं। भाजपा नेतृत्व सदमे की रणनीति के माध्यम से किसी और को नेता के रूप में ला सकता है।

अधिकांश जनमत सर्वेक्षणों ने भाजपा को 115 से 135 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की है। 1985 में, कांग्रेस पार्टी ने राज्य के एक अनुभवी  नेता, तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय माधवसिंह सोलंकी के नेतृत्व में 149 सीटें जीतीं थी। यह एक रिकॉर्ड है। 1980 में भी कांग्रेस ने 141 सीटें जीती थीं। उन्होंने यह सफलता 'खाम' यानी क्षत्रिय, दलित, आदिवासी और मुस्लिम के समीकरण के आधार पर हासिल की थी। आगे इसी समीकरण को तोड़ते हुए बीजेपी ने हिंदुत्व के दम पर राज्य में अपनी पकड़ बनाई। 2002 में भाजपा द्वारा जीती गई 127 सीटें उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। अब बीस साल बाद बीजेपी 150 सीटों का रिकॉर्ड बनाने की कोशिश कर रही है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की उपस्थिति कम से कम मीडिया के विमर्श में उतनी प्रमुख नहीं है। उसकी तुलना में आम आदमी पार्टी माहौल बनाने में सफल रही है। सवाल यह है कि क्या बीजेपी इन दोनों के वोट बंटवारे का फायदा उठाकर सीटों का रिकॉर्ड बनाएगी। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, मुक्त पत्रकार

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