मंगलवार, 14 मार्च 2023

( बाल कहानी) शिक्षक का धन

चार दोस्त थे।  चारों पढ़ाई में मेधावी थे। डॉक्टर बन गया। दुसरा इंजीनियर बन गया। तिसरा व्यापारी बन गया।  चौथा व्यक्ति शिक्षक बन गया क्योंकि वह परिस्थितियों के कारण आगे नहीं पढ़ सका। 

ये चारों अपने-अपने क्षेत्र में आगे आए थे। जो इंजीनियर बना वह विदेश चला गया। व्यापारी ने अपने व्यापार का बहुत विस्तार किया और धन संचित किया। डॉक्टर ने एक बड़ा अस्पताल बनाया।  खूब पैसा कमाया और सब अमीर हो गए। 

शिक्षक ने अपनी नोकरी ईमानदारी से किया। कक्षा में दिल से पढ़ाया। छात्रों पर प्यार किया। ट्यूशन नहीं किया;  लेकिन बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। जो तनख्वाह मिलती थी उसी में संतोष से रहते थे। खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी;  लेकिन अपव्यय नहीं की। हालाँकि, शिक्षक खुद को अमीर मानते थे। उन्हें इस बात का कभी बुरा नहीं लगा कि उनके पास ज्यादा दौलत नहीं है।क्योंकि वह जीवन में जीवित चेतना के साथ सामंजस्य रखता था। वह अपने प्रिय शिष्य के मन में बैठा था। अब सेवानिवृत्ति की उम्र हो चुकी थी। इंजीनियर, व्यापारी और डॉक्टर को अपना सारा जीवन एक व्यस्त जीवन व्यतीत करना पड़ा था। उन सभी ने अपने व्यवसाय से छुट्टी ले ली और अपने खाली समय का आनंद लेने लगे। शिक्षक भी सेवानिवृत्त हो गए थे। अब चारों दोस्तों ने बार-बार मिलने का फैसला किया। 

एक रविवार को चारों मिले।  सब बहुत खुश थे। फिर एक-दूसरों की पूछताछ की, बच्चों की पूछताछ की।  फिर  इधर-उधर की बातें होती रहीं। इंजीनियर, डॉक्टर, बिजनेसमैन ने जीवन में क्या और कितना हासिल किया इसका हिसाब देना शुरू कर दिया। 

जिस होटल में वे बातें करने के लिए इकट्ठे हुए थे, वह एक फाइव स्टार होटल था। फिर इंजीनियर धीरे से टीचर से पुछा...

"क्या, तुमने घर बनाया है या नहीं?  तनख्वाह कम मिलती होगी, इसलिए पुछा?"

"मेरे पास एक नहीं दस-पांच अच्छे घर हैं।वे सिर्फ इसी गांव में नहीं हैं, एक मुंबई में, एक चेन्नई में, एक विदेश में..."

"ओह, यह कैसे संभव है?  तेरे पास इतना पैसा कैसे आया?"

"क्या तू एक शिक्षक होने के बावजूद साइड बिजनेस कर रहा था?"

" छे. छे.  मैं ऐसा इसलिए कर पाया क्योंकि मैं एक शिक्षक था।"

 "ऐसा कैसे हो सकता है?" व्यापारी ने कहा।

"मैं आपको बताता हूं, लेकिन आप मेरे बताए बिना जान जाएंगे।"

"हमें बिना बताए कैसे पता चलेगा?"

अब तक वे बातें करते-करते खाना खा चुके थे।वेटर बिल लेकर आया। उस पर मुहर लगी थी “भुगतान किया है।"  इंजीनियर हैरान रह गया। सभी हैरान हो उठे। 

एक आदमी तेजी से काउंटर से आगे आया और टीचर के पैर छूते हुए बोला...

"सर हमारे होटल में पहली बार आए हैं।  कभी नहीं आते। मेरी किस्मत आज यहां सर आये। मैं उनका छात्र हूं।" 

शिक्षक भावविभोर हो गये। अन्य तिनों, इंजीनियर, व्यवसायी, डॉक्टर भी अभिभूत थे।

शिक्षक के पास कार नहीं थी; लेकिन बाकी तीनों अपनी कार लेकर आ गए थे। शिक्षक टैक्सी से जाने वाले थे। तीनों शिक्षक को टैक्सी स्टॉप पर छोड़ने गए। वे कुछ देर खड़े होकर बातें करते रहे। तो इतने में एक बढ़िया ए.सी. गाड़ी उनके सामने आकर रुकी। स्टीयरिंग व्हील पर बैठे रोबदार व्यक्ति ने पूछा, "सर, चलिए आपको घर छोड़ देते हैं। ”

 वह उनका छात्र था।

तब शिक्षक ने अपने मित्रों से कहा, "देखो, इस समय यह मेरी कार है। अब आप जान गये होंगे की, मेरे घर मतलब मेरे छात्रों के घर। मेरे छात्रों की कार मतलब मेरी कार ... क्या स्वामित्व की मोहर लगाना आवश्यक है? एक शिक्षक का धन ऐसा अगणित होता है।" -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली (महाराष्ट्र)

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