मंगलवार, 14 मार्च 2023

कुबेर और फकीर

स्वामी विवेकानंद एक महान दार्शनिक, वक्ता, दूरदर्शी समाज सुधारक थे जिन्होंने शिकागो में धर्म परिषद में भारतीय संस्कृति का झंडा बुलंद किया। सामने वाले को उदाहरण के साथ ज्ञानोदय करने की उनकी एक विशेष शैली थी। अमेरिका में धार्मिक सम्मेलन के बाद स्वामी जी एक बार फिर वहाँ गये थे। स्वामी जी एक सदाचारी अमरीकन के घर ठहरे थे। वह प्रसिद्ध उद्योगपति रॉकफेलर के व्यवसाय में अमेरिकी भागीदार थे। इस भागीदार को स्वामी विवेकानंद पर बहुत विश्वास था। इसलिए यह भागीदार अक्सर विवेकानंद के बारे में रॉकफेलर से सम्मानपूर्वक बात करता था। रॉकफेलर सुनते थे। रॉकफेलर यानी कुबेर! धन का भारी प्रवाह और बहिर्वाह था। धन के बाद अहंकार आता है। वह रॉकफेलर के पास भी  आया था। जॉन डी.  रॉकफेलर का नाम तब न केवल अमेरिका में बल्कि पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रहा था। उनकी गिनती दुनिया के सबसे अमीर लोगों में होने लगी थी। जैसे-जैसे धन बढ़ता गया, वैसे-वैसे उसका अहंकार भी बढ़ता गया। दूसरों का तिरस्कार  करने की प्रवृत्ति बढ़ी और यह स्वाभाविक भी था। क्योंकि बड़ी कठिनाई, संकल्प, परिश्रम से डॉ.  जॉन डी.  रॉकफेलर ने पैसा कमाया था। उन्होंने दीर्घकाल तक लक्ष्मी की आराधना की और फिर लक्ष्मी ने भी उनके सिर पर वरदहस्त रखा। 

एक भागीदार मित्र ने विवेकानंद के बारे में कहा,

 फिर रॉकफेलर ने पूछा, "यह आदमी कौन हे?"

"एक हिंदू तपस्वी है।"   मित्र ने उत्तर दिया।

"उसके पास कौनसा ऐश्वर्य है?"

"बुद्धी और विचारों का।"

" वो कैसा दिखाई देता है?"

" सन्यासी है। भगवा वस्त्र पहनता है।"

"फिर सन्यासी से मिलना ही चाहिए।"

"आप कुबेर हो;  लेकिन वह तपस्वी विचारों का कुबेर है।"

"लेकिन मेरे पास ऐसे लोगों से मिलने के लिए समय नहीं है।"  रॉकफेलर।

तो भी मैं आप से बिनती करता हूं, कि उन से मिल लिजीए।"

"तो उन्हें यहाँ ले आओ?"

 "इसके बजाय आपको ही आना चाहिए।  वे नहीं आएंगे।”  मित्र ने कहा।

"फिर जब मेरे पास समय होगा तब मैं आऊंगा।  मैं किसी संन्यासी से मिलने में अपना समय नष्ट नहीं करूँगा। पहले उद्योग, फिर संन्यासी को मिलना। 

"ठीक है, समय निकालना।"

यह बातचीत वहीं रुक गई। कई दिन बीत गए और फिर रॉकफेलर को याद आया। उन्होंने जानबूझकर अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकाला। 

उसने मजाक में अपने मित्र से कहा, "चलो तुम्हारे उस सन्यासी से मिलते हैं..." 

रॉकफेलर मित्र के घर आये, स्वामीजी अभ्यासिका में थे। नौकर ने रॉकफेलर को वहाँ ले आया। स्वामीजी एकाग्रता से पुस्तक पढ़ रहे थे। स्वामी जी ने रॉकफेलर की ओर एक पलक भी नहीं उठाई। रॉकफेलर के अहंकार को ठेस पहुंची। 

स्वामी जी स्वयं अमेरिका में कुछ धन एकत्रित कर रहे थे;  लेकिन यह सामाजिक कार्यों के लिए है। उन्हें अपने लिए कुछ नहीं चाहिए था। उन्होंने रॉकफेलर की उपेक्षा नहीं की; लेकिन उसकी शिफारस भी नहीं की। रॉकफेलर गुस्से में था और चला गया।  दोस्त के समझ में आने पर दोस्त भी थोड़ा परेशान हुआ। 

और क्या आश्चर्य!

एक हफ्ते के भीतर, रॉकफेलर विवेकानंद से मिलने के लिए वापस आ गया। वह जब आया तो कुछ कागजात लेकर आया था। रॉकफेलर थोड़ा गुस्से में था। उसने वह कागज विवेकानंद के सामने रख दिया। 

"क्या है वह?"

"हालांकि इसे पढ़ें तो सही।"

"खुद ही बताएं।"  स्वामीजी ने प्रसन्न मुस्कान के साथ कहा।

"गरीबों की मदद के लिए, विभिन्न संगठनों को दान देने की कुछ योजनाएं हैं। मैं अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दे रहा हूं। अब तो मुझे धन्यवाद दिजीए।"  रॉकफेलर ने कहा।

"आप कुबेर हैं।  मैं संन्यासी हूं, क्या संन्यासी का धन्यवाद आप को चलेगा?" दोनों दिल खोलकर हँसे।

स्वामीजी की शिष्या एम्मा कोव ने अपनी दोस्त पॉल वेर्डियर से कहा, "फकीर ने कुबेर को बदल दिया।"

-मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली (महाराष्ट्र)

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