सोमवार, 27 मार्च 2023

3. सुभाषित रत्न

पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्।

मूढै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।। 

रत्न क्या है? एक बड़ी कीमती चीज। यदि कोई वस्तु दुर्लभ है, तो उसका मूल्य बढ़ जाता है। इसलिए, हम विभिन्न पत्थरों का भी उपयोग करते हैं जिन्होंने लाखों वर्षों तक पृथ्वी के पेट में रहने के बाद अलग-अलग चमकीले रंग प्राप्त किए हैं। बृहस्पति के पत्थर, शनि के पत्थर आदि - रत्न के रूप में हम स्वीकार करते हैं। लेकिन इस कवि की दृष्टि में इस धरती पर तीन ही असली रत्न हैं! वे कौन से रत्न हैं? तो एक जल!  पानी! जीवन को बनाए रखने के लिए यह इतना आवश्यक है कि भाषा ने तय कर लिया है कि जीवन शब्द का अर्थ ही जल है! हमें जितना वर्षा जल प्राप्त होता है, उसे ही संग्रहित करके वर्ष भर उपयोग में लाना होता है। नहीं तो धरती को खोदकर उसके पेट से पानी निकालना पड़ेगा। आज पानी की खपत काफी हद तक बढ़ गई है।  इसलिए पानी को धरती के पेट से खोदना पड रहा है। ऐसे ही खुदाई होती रही तो कल जल संकट खड़ा हो जाएगा।  इससे बचने के लिए पानी का इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए। आवश्यक और कड़ी मेहनत से अर्जित, यह एक रत्न है! एक और रत्न है भोजन। यह बहुत जरूरी है, और इसे कड़ी मेहनत से कमाना पड़ता है, इसलिए वे भी एक रत्न है। और अब तीसरा रत्न सुभाषिता-सद्विचार है। क्योंकि यदि मानव जीवन वास्तव में पशुओं से भिन्न है, तो यह संस्कृति के कारण है, और सभ्य जीवन के लिए अच्छे विचारों की नितांत आवश्यकता हैं। ऐसे अच्छे विचार जहां से भी प्राप्त हों, वहीं से प्राप्त करने चाहिए। इसके बाद इनका वितरण किया जा सकता है। इन तीन रत्नों के मिलने पर भी मूर्ख, मूढ या मोहित लोग पत्थर के टुकड़े-पत्थर को ही रत्न कहते हैं। ऐसा दुःख कवि सुभाषिता में  व्यक्त करता है।

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