मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

(बाल कहानी) सेवा का फल

मोरगाँव नाम का एक गाँव था। उस गाँव में नंदू नाम का एक बहुत गरीब;  लेकिन मेहनती और परोपकारी लड़का था। उसके घर की स्थिति बहुत ही खराब थी। इसलिए उसे बचपन से ही छोटे-मोटे काम करने पड़ते थे। ऐसे छोटे-छोटे दैनिक कार्य करके वो अपनी शिक्षा का खर्च चला रहा था। नंदू के मोरगांव में सरकारी अस्पताल बनने से गांव के साथ साथ आसपास के गांवों के मरीजों की भी सुविधा हो गई। शहर के महंगे निजी अस्पतालों में गरीब नहीं जा पाता था। लिहाजा इस अस्पताल में लोगों की भीड़ लगनी शुरू हो गई। जाहिर है, अस्पताल की व्यस्तता भी बढ़ी। एक बार अचानक आसपास के गांवों में किसी तरह की बीमारी फैल गई। बुजुर्ग नागरिकों को अचानक बुखार आ जाता था, हाथ-पैर के जोड़, घुटने बहुत सख्त हो जाते थे और उनके हाथ- पाँव की ताकत चली जाती थी। अस्पताल में अचानक बुजुर्ग मरीजों की संख्या बढ़ गई।परिचारक उनकी सेवा करने में असफल होने लगे।  नंदू यह जानता था। उसने मरीजों की सेवा करने के लिए रोज सुबह-शाम अस्पताल जाने का फैसला किया। 

शाम को वह तुरंत अस्पताल गया। वहां जाकर उसने सबसे पहले वहां के मुख्य चिकित्सक से मुलाकात की। डॉक्टर उसके इस उदार रवैये से अच्छी तरह वाकिफ थे। वे नंदू के फैसले से खुश थे। उन्होंने झट से नंदू को हाँ कर दी। उसी दिन से नंदू की  मरीजों की देखभाल शुरू हो गई। 

कई दादा-दादी के पास अस्पताल में रहने के लिए कोई करीबी या दूर का रिश्तेदार नहीं था। ऐसे रोगियों को समय पर उचित दवा देना, जो लोग ठीक से खा नहीं सकते उन्हें अपने हाथों से खिलाना, गर्म पानी की थैली से उनके जोड़ों को भूनना, तेल मालिश करना, कपड़े को गर्म पानी में भिगोकर निचोड़ कर निकाल लेना और गर्म गीले कपड़े से  मरीजों के बदन पोंछ लेना, अस्पताल की चादरें गर्म पानी से धोना ऐसा काम वह खुशी-खुशी सुबह-शाम  करने लगा। 

जब दिनेश जैसे उसके करीबी दोस्तों को पता चला कि नंदू अस्पताल में सेवा दे रहा है, तो वे नंदू के साथ मरीजों की सेवा के लिए वहां आने लगे। डॉक्टरों का काम भी आसान हो गया। सभी के सहयोग से अस्पताल में प्रतिदिन सफाई अभियान चलाया गया। नतीजा यह हुआ कि बीमारी भाग गई। सभी दादा-दादी ठीक हो गए। डॉक्टर ने नंदू की सेवा से प्रसन्न होकर इसकी सूचना शासन को दी। जिलाधिकारी ने भव्य समारोह में नंदू को सम्मानित किया। समाचार पत्रों ने भी उसकी उपलब्धियों पर ध्यान दिया। सभी ग्रामीणों ने उसकी प्रशंसा की। उनकी स्तुति के शब्द सुनकर नंदू बहुत प्रसन्न हुआ। दिलचस्प बात यह है कि जब उस अस्पताल के सभी डॉक्टरों ने उसकी आगे की पढ़ाई की जिम्मेदारी ली तो उसे लगा कि उसके काम का वाकई सार्थक हो गया। बड़े होने पर उसने डॉक्टर बनने का फैसला किया। -प्रा. देवबा पाटील (अनुवाद- मच्छिंद्र ऐनापुरे) 

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