शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

प्रकृति हैं मनुष्य की सच्ची मित्र

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। पहले के समय से यह गिरोहों या समूहों द्वारा बसा हुआ है। समूह मन, समूह भावना उसका स्थायी भाव है।  लेकिन बाकी दुनिया ने अनुभव किया है कि क्या हो सकता है जब यही समूह भावना लालच में परिलक्षित होती है। जैसे-जैसे मनुष्य विकसित हुए, उन्होंने अधिक उन्नत, आधुनिक जीवन शैली अपनाना शुरू किया। विकास के नाम पर प्रकृति और पर्यावरण को नष्ट किया जाने लगा। मनुष्य का प्रकृति से वियोग, प्रकृति को कुरेदना अपनी ही जड़ पर संकट है,यह बताने के लिए किसी ज्योतिष की जरूरत नहीं है! 

कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे-जैसे मनुष्य प्रकृति से दूर होता जा रहा है, उसका विनाश निकट आ रहा है। दो साल से कोहराम मचा रही वैश्विक कोरोना महामारी ने यह साबित कर दिया है। (अब उसने फिर से हाथ-पांव फैलाना शुरू कर दिया है।) फिर भी मनुष्य सुधार ने को तैयार नहीं है। कोरोना महामारी ने क्या सिखाया? तो भौतिक सुख, भौतिकवाद किसी काम का नहीं है । जिसे हम विकास कहते हैं, जिसे हम धन कहते हैं, वह निष्प्रभावी है। हाथ में चाहे कितनी भी दौलत क्यों न हो, वह मौके पर किसी काम की नहीं होती। भौतिक सुख क्षणभंगुर है। तो शाश्वत सत्य क्या है?  प्रकृति और प्रकृति के नियम शाश्वत सत्य हैं। मनुष्य को जीवित रहने के लिए स्वच्छ हवा, पानी, भोजन और आश्रय की आवश्यकता होती है। इन आवश्यकताओं के अतिरिक्त अभी भी मनुष्य द्वारा स्वयं के लिए निर्मित आवश्यकताएँ हैं। उच्च वर्ग का रहन-सहन, तकनीक का अत्यधिक उपयोग और अधिक सुख-सुविधाओं की आवश्यकता...  है.यह साफ महसूस हो रहा है. की लेकिन इन तमाम अतिरिक्त जरूरतों और उससे पैदा हुई चाहत को पूरा करने का बोझ अब हमारी जड़ों पर उठने लगा है। इससे डूबने वाले व्यक्ति की जैसी हालत मनुष्य की हो गई है। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए मनुष्य को विकास और प्रगति की अपनी इच्छा को त्याग कर एक बार फिर से प्रकृति के करीब जाना होगा। प्रकृति के साथ सहयोग हमेशा मनुष्य की भलाई के लिए रहा है। जिस समय मनुष्य प्रकृति से दूर चला गया... विकास की इच्छा के कारण पर्यावरण नष्ट हो गया, उस समय मनुष्य को कष्ट उठाना पड़ा है। इतिहास में इसके कई उदाहरण हैं। यह बार-बार सिद्ध हो चुका है कि प्रकृति से बचकर या प्रकृति का उपहास उड़ाकर, उसे नुकसान पाहूंचा कर मानव प्रगति नहीं की जा सकती। इसलिए नव वर्ष में नया संकल्प एक ही होना चाहिए - लोभ से होगा ऱ्हास, रख लो प्रकृति संरक्षण का झण्डा अपने पास।

प्रकृति ने हमेशा देने की भूमिका स्वीकार ली है।  वह सर्वोत्तम दाता है। हवा, पानी, भोजन, धूप सब कुछ प्रकृति ने मुफ्त में प्रदान किया है।  आपने कोरोना के दौरान ऑक्सीजन का महत्व सीखा है। प्रकृति हमें यह ऑक्सीजन मुफ्त में देती है। यह और भी कई जरूरतों को पूरा करती है, यहां तक ​​कि प्रकृति भी मनुष्य की जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी जरूरतों को पूरा करती है। बचपन के पालने से लेकर जवानी का घर, जलाऊ लकड़ी, फर्नीचर से लेकर बुढ़ापे की छड़ी तक, प्रकृति सब कुछ देती है। प्रकृति अनेक प्रकार की औषधि, स्वस्थ शहद, गोंद, पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण, संवर्धन प्रदान करती है। प्रकृति जल चक्र, जीवन चक्र, खाद्य श्रृंखला को संतुलित करती है। प्रकृति सभी प्रेरणा का स्रोत है। विकास का प्रारंभिक बिंदु है।  यह सर्जन का आविष्कार है। वे समस्त कलाओं के रचयिता हैं।ऊर्जा का सबसे अच्छा स्रोत प्रकृति है। ऐसी व्यापक, जीवनदायी प्रकृति की रक्षा की जानी चाहिए। मनुष्य को प्रकृति का उपभोग किए बिना उसका रक्षक बनना चाहिए।  इसी में मानव कल्याण निहित है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि प्रकृति मनुष्य की सच्ची मित्र, रक्षक है। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली। महाराष्ट्र।

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