सोमवार, 26 दिसंबर 2022

(जापान की बालकहानी) जिज़ो देवता

एक गाँव में मोसाकू नाम का एक गरीब लड़का अपने माता- पिता के साथ एक छोटी सी झोपड़ी में रहता था। वह अपने माता-पिता की बनाई सुंदर टोपियों को बाजार ले जाकर बेचता था। अगले दिन त्योहार था। उन दोनों ने रंग-बिरंगी, आकर्षक टोपियाँ बनाईं और मोसाकू से कहा कि इसे बाज़ार ले जाकर बेच दो; लेकिन दुर्भाग्य से अचानक मौसम बदल गया। तेज हवा चलने लगी। बर्फ़ीला तूफ़ान शुरू हो गया है। कोई घर से बाहर नहीं निकला। अगले दिन के त्योहार की खुशी कहीं नजर नहीं आ रही थी। इतनी भयानक ठंड का सामना करते हुए बेचारा मोसाकू किसी तरह बाजार पहुंच गया। बाजार सुनसान सा नजर आया। वहाँ एक कोने में जगह पाकर मोसाकू जोश से चिल्लाने लगा। 

"टोपी  ले लो टोपी ।  रंगीन, सुंदर आकर्षक टोपियाँ।”
मोसाकु जानता था कि अगर आज टोपियाँ नहीं बिकीं, तो उसे और उसके माता-पिता को भूखे पेट सोना पड़ेगा, और दूसरे दिन पर्व का था। मेहमान, रिश्तेदार सब मिलने आएंगे, तो  उनका आवभगत कैसे करेंगे? टोपियां नहीं बिकेंगी तो पैसे कैसे बनेंगे? पैसा नहीं तो कुछ नहीं होगा... मोसाकू बहुत चिंतित था। 
अंत में हताशा में, वह टोपी का थैला लेकर घर लौटने लगा। उसने दूर से कुछ बच्चों को देखा। वे लाल रंग के कपड़े में लिपटे हुए थे। यह सोचकर कि उसे घर जाने के लिए अच्छी कंपनी मिलेगी, वह तेजी से आगे बढ़ा। लेकिन क्या आश्चर्य! वे बच्चे जिजो देवताओं की मूर्तियाँ थे! कहा जाता है कि जिजो देवता छोटे बच्चों की बुराई से रक्षा करते हैं। उसे लगा कि ये मूर्तियाँ सचमुच ठंड से काँप रही हैं। चूंकि मूर्तियों के सिर पर कुछ नहीं था, इसलिए उनके सिर पर धीरे-धीरे बर्फ जमा होने लगी थी।  मोसाकू मूल रूप से बहुत स्नेही था । यह सोचकर कि उसकी बिना बिकी टोपियाँ काम आएगी, उसने प्रत्येक मूर्ति पर एक एक टोपी रख दी। दस मूर्तियाँ थीं, लेकिन उसके पास केवल नौ टोपियाँ थीं।  अब क्या करें? कोमल हृदय वाले मोसाकू ने तुरंत अपनी टोपी उतारी और मूर्ति पर रख दी। फिर वह संतुष्ट, प्रसन्न होकर घर लौटा। 

माता-पिता मोसाकू का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। मोसाकु ने जो कुछ हुआ था उसकी वास्तविकता को दोहराया;  लेकिन अब सवाल था कि रात के खाने का क्या करें? अंत में एक कण भी खाए बिना तीनों सो गए । मोसाकु थक कर सो गया; लेकिन उसकी मां अगले दिन के त्योहार की चिंता में जागती रही। आधी रात को किसी ने धीरे से दरवाज़ा खटखटाया। माँ दरवाजा खोलती है और देखती है, दरवाजे पर दस बच्चे खडे  हैं। हाथ में अलग-अलग डिब्बे थे। मोसाकु की टोपी पहने हुए दसवें लड़के के हाथ में एक बड़ा बक्सा था। इस में कीमती सामान था। मोसाकु के घर में लाई गई हर चीज को रखते हुए उसने कहा, "हम वो बच्चे हैं जिन्हें मोसाकू ने टोपियां दीं।"  

उस दिन से मोसाकु के जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रही।  मोसाकु के गुणों से प्रसन्न होकर, जिज़ो देवताओं ने उसका जीवन सुख और संतोष से भर दिया। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली। महाराष्ट्र। 

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