शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

(बाल कहानी) गलती का हुआ एहसास

अनिकेत अपने माता-पिता और दादा-दादी के साथ एक बड़े फ्लैट में रहता था। माता-पिता को पूरे दिन काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ता था। घर में छोटा अनिकेत अपने दादा-दादी के पास रहता था। उसकी दादी उसे नहलाती और खाना खिलाती थी। वह उसे कहानियां पढ़कर सुनाती और सुला देती थी। शाम को अनिकेत अपने दादा के साथ बगीचे में घूमने जाता था। बगीचे में हर तरह के जानवर थे। दादाजी कभी उसे जानवर देखने ले जाते, कभी झुले पर और कभी सी-सॉ, फिसलपट्टी पर खेलने देते। एक दिन जब दादाजी बोर हो जाते तो वे दोनों बालकनी में बैठकर गुजरती कारों को देखते और मजा लेते। दादाजी ने अनिकेत को बहुत कुछ सिखाया था। दादाजी ने उन्हें कैंची, हथौड़ी और पेंचकस जैसे औजारों का इस्तेमाल करना भी सिखाया। अनिकेत अपने दादा-दादी से बहुत प्यार करता था। 

जब अनिकेत के माता-पिता काम से वापस आते तो सब साथ बैठकर खाना खाते। दादी को घर के लोगों के लिए खुद खाना बनाना अच्छा लगता था। मां खाने की टेबल पर प्लेट लगाती थी। अनिकेत दिन भर की मस्ती के बारे में अपने माता-पिता को बताता था।  ऐसे ही मस्ती भरे दिन बीत रहे थे। 

दिन, महीने, साल बीत गए। अनिकेत अब बड़ा हो गया था और एक बड़े स्कूल में जाने लगा था। माता-पिता का काम बहुत बढ़ गया था। हालाँकि, दादा-दादी अब बहुत थक चुके थे। दादाजी ज्यादा देर तक टहलने नहीं जा सकते थे। घर में ही घूमते समय उन्हें लाठी लेकर चलना पड़ता था। दादी को बर्तन संभालने में भी परेशानी होती थी। दादी घर का काम और खाना पहले की तरह नहीं कर पा रही थी। धीरे-धीरे दादी ने उसे बंद कर दिया और एक महिला को खाना बनाने के लिए रख दिया गया। 

रात का खाना अभी भी साथ में खाया जाता था। दादा-दादी धीरे-धीरे खाना खाते थे। वृद्धावस्था के कारण उनके हाथ काँपते थे। एक बार खाना खाते समय दादी के हाथ से कांच का एक सुंदर कटोरा फिसल कर फर्श पर गिरकर गया और उसके टुकड़े-टुकड़े हो गये। एक बार दादाजी के हाथ से तश्तरी टूट गई। 

अगले दिन माँ ने दादा-दादी के लिए मेज पर एक साधारण लकड़ी की थाली और कटोरी रख दी। दादा-दादी को थोड़ा दुख हुआ;  लेकिन वे कुछ नहीं बोले। वास्तव में, उस दिन भोजन के समय कोई नहीं बोला। सबने चुपचाप खाना खाया। खाना खाने के बाद अनिकेत बालकनी में जाकर कुछ कर रहा था। उसकी आवाज आ रही थी। माँ ने पूछा, "क्या चल रहा है, अनिकेत?" 

"मैं इस लकड़ी के तख़्त से प्लेट और कटोरे बना रहा हूँ।"

"क्यों?"

"फिर, जब तुम और पापा दादा-दादी की तरह बूढ़े हो जाओगे,  तो आपको भी ऐसी प्लेटों -कटोरों की आवश्यकता होगी!"

यह बात सुनते ही माँ बहुत व्याकुल हो उठी। माँ ने अनिकेत को अपने पास ले लिया और बोली, "सचमुच अनिकेत, मैं गलत थी। 'तेरी वजह से मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। अभी कभी भी दादा-दादी के लिए अलग सी थाली  रखूंगी नहीं।" -मच्छिंद्र ऐनापुरे, जत जि. सांगली 

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