शनिवार, 25 नवंबर 2023

घुड़सवारी मुझे विरासत में मिली: दिव्यकृति सिंह राठौड़


जयपुर के मुंडोता की रहने वाली दिव्यकृति एक भारतीय घुड़सवार हैं। एशियाई खेलों में घुड़सवारी ड्रेसेज टीम में स्वर्ण पदक जीतकर, उसने  41 साल बाद भारत को घुड़सवारी में सफलता दिलाई। वह एशियाई खेलों में घुड़सवारी में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। साथ ही, विश्व ड्रेसेज रैंकिंग में वह एशिया में प्रथम और विश्व में 14वें स्थान पर हैं। हाल ही में सऊदी में आयोजित चैंपियनशिप में उसने एक रजत और दो कांस्य पदक जीते हैं। उसका मानना ​​है कि माता-पिता को अपने बच्चों को खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। कोई भी पहाड़ चढ़ने के लिए बहुत ऊँचा नहीं है।

दिव्यकृति सिंह राठौड़ कहती हैं, मेरे तीन घोड़े मेरे सच्चे साथी हैं। मैं अपना ज्यादातर समय उनके साथ बिताती  हूं।' मैं पिछले दो वर्षों से घर से दूर जर्मनी में अभ्यास कर रही हूं, घर से दूर खुद को मजबूत रखना आसान नहीं है। मेरे माता-पिता बचपन से ही मेरा मार्गदर्शन करते रहे हैं। मेरे पिता विक्रम सिंह राठौड़ पोलो खेलते थे, इसलिए घुड़सवारी मुझे विरासत में मिली। घोड़ों के प्रति मेरा प्रेम कॉलेज के समय से है। वहीं से मैंने घुड़सवारी सीखी और उसी को अपना करियर चुना।

घुड़सवारी में अब लड़कियां भी आगे आ रही हैं। हालाँकि यह बहुत महंगा खेल है, इसे महिला और पुरुष दोनों मिलकर खेलते हैं। शुरुआत में मुझे कई चुनौतियों, असफलताओं का सामना करना पड़ा, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। जब आप सफल होते हैं, तो हर कोई आपके साथ होता है, लेकिन जब आप असफल होते हैं, तो आपके परिवार का समर्थन ही आपको आगे बढ़ने में मदद करता है। माता-पिता को अपने बच्चों की असफलताओं को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ना, सिखाना चाहिए। -मच्छिंद्र ऐनापुरे, जत जि. सांगली

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