मंगलवार, 19 सितंबर 2023

भारत की विकास गंगा की पंचरति

"वर्तमान में किए गए कार्य हमारा भविष्य सुनिश्चित करते हैं।-महात्मा गांधी"

भारत 2047 में अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी मनाएगा।हमने उस समय एक विकसित देश बनने का लक्ष्य रखा है। हमने अगले पांच वर्षों के भीतर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का संकल्प लिया है। यह विश्व मानचित्र पर एक ऐसे देश के रूप में अपना स्थान स्थापित कर रहा है जो अमेरिका सहित पश्चिमी देशों और चीन तथा रूस जैसे उनके कट्टर विरोधियों के बीच संतुलन बनाता है। हाल ही में नई दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में सभी देशों के बीच सर्वसम्मति लाने में भारत की सफलता इसी का प्रतीक है। अंतर्राष्ट्रीय सौर महासंघ के अलावा, जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संकट का समाधान हो सकता है, भारत ने विश्व जैव ईंधन महासंघ की स्थापना की पहल की है। उससे भी आगे बढ़ते हुए हमने खाड़ी देशों और यूरोप को जोड़ने वाला 8166 किमी लंबा आर्थिक गलियारा भी बनाया है। इन सभी बिंदुओं को जोड़कर नए भारत की एक नई तस्वीर उभर रही है और वर्तमान कार्यों से यह और अधिक स्पष्ट हो रही है। हालाँकि, इन सभी आशाजनक विकासों की पृष्ठभूमि कुछ हद तक दाग है।  दुनिया अब कोरोना महामारी से कुछ हद तक उबर रही है।एक साल बाद भी रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध कम होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।
इसलिए, पूरी दुनिया ऊर्जा, अन्न, उर्वरक और कुल मिलाकर मुद्रास्फीति से पीड़ित है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से होने वाली आपदाओं की आवृत्ति बढ़ रही है। कुल मिलाकर, यह वह समय है जब दुनिया के मामले एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गए हैं। लेकिन इस मोर्चे पर भी भारत का नेतृत्व और देश की अर्थव्यवस्था में स्थिरता दुनिया की प्रशंसा के अनुरूप प्रदर्शन कर रही है।

भारत के परिवर्तन की पृष्ठभूमि
सामाजिक कारण: कन्या भ्रूण हत्या में गिरावट, लिंग संतुलन और शिशु मृत्यु दर में गिरावट इसके प्रमुख संकेतक हैं। 'आधार' प्रणाली ने हर भारतीय को जो पहचान दी है, वह क्रांतिकारी साबित हो रही है। सरकारी योजनाओं से समाज के जरूरतमंद वर्गों को वित्तीय सहायता का सीधा हस्तांतरण (डीबीटी) हासिल किया गया है।  पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यह गरीबी उन्मूलन के प्रयासों का एक बड़ा कारण है।
अर्थशास्त्र: आर्थिक चक्र की गति को बनाए रखने के लिए मांग और आपूर्ति श्रृंखला दोनों को संतुलित करना आवश्यक है। भारत ने पिछले एक दशक में कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती और वस्तु एवं सेवा कर लागू करके आपूर्ति पक्ष को सुव्यवस्थित किया है। बुनियादी ढांचे में पर्याप्त वृद्धि, दिवाला और दिवालियापन अधिनियम, निर्माण क्षेत्र विनियमन अधिनियम (आरईआरए) ने उद्यमियों और पेशेवरों के शासन और विनियमन दोनों को आसान बना दिया है। निःसंदेह, हमारे देश को व्यापार-अनुकूल वातावरण बनाने के लिए अभी एक लंबा रास्ता तय करना है।
राजनीति: भारत की राजनीतिक स्थिरता दक्षिण एशिया में उसके पड़ोसियों की तुलना में अधिक है। गठबंधन सरकारों के कार्यकाल से बाहर आने के बाद हमारा देश पिछले एक दशक से इसका अनुभव कर रहा है। ऐसी स्थिरता विकास और प्रगति के लिए कार्यक्रमों को लागू करने में दृढ़ता को बढ़ावा देती है। चीन, जो कभी विकास की राह पर हमारे बराबर था, पिछले दो दशकों में,  जब वैश्वीकरण की प्रवृत्ति ने जोर पकड़ा और दुनिया भर में भू-राजनीतिक माहौल भी विकास के लिए अनुकूल था, घोड़े की दौड़ में लग गया । अब वैश्वीकरण का चक्र उलट रहा है और एक तरफ अमेरिका-चीन संघर्ष और दूसरी तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण विश्व मंच पर अस्थिरता है। लेकिन इन बाहरी प्रतिकूलताओं में भी हमारे पाल की हवा हमारे जहाज को सुरक्षित किनारे तक ले जाती रहेगी, ऐसा भारत है। आइए हम उन कारणों को पंचरती कहते हैं जो सशक्त भारत के लिए यह विश्वास दिलाते हैं।
1.  जनसांख्यिकीय लाभांश (जनसांख्यिकी): दुनिया वयस्कता और कुछ क्षेत्रों में बुढ़ापे की ओर बढ़ रही है। भारत, 27 वर्ष की औसत आयु के साथ, उपलब्ध जनशक्ति के साथ इसका एक उल्लेखनीय अपवाद है।
जनशक्ति का कौशल बढ़ाने, इसमें महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और श्रम कानूनों में अधिक लचीलापन लाने पर और विचार करने की जरूरत है। लेकिन प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की तरह उस दिशा में भी प्रयास किये जा रहे हैं।
2.  ऋण के मोर्चे पर खुशहाली: ऋण आज भविष्य की बचत को खर्च करने का एक तरीका है। भारत का ऋण और इसका ऋण-से-जीडीपी अनुपात दोनों कई अन्य विकसित देशों की तुलना में पहुंच के भीतर हैं। संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के मुताबिक यह आंकड़ा 170 फीसदी है। वैश्विक आंकड़ा 248 प्रतिशत है, और अमेरिका (264%) से लेकर चीन (295%) तक अधिकांश अग्रणी देशों में यह और भी अधिक है। हालाँकि यह इन देशों की ऋण भुगतान क्षमता को भी दर्शाता है, घरेलू अर्थव्यवस्था के सकल प्रबंधन और जोखिम प्रबंधन दोनों ही दृष्टिकोण से हम संतोषजनक स्थिति में हैं। यह महत्वपूर्ण है।
3. वैश्वीकरण की उल्टी गंगा (विवैश्वीकरण): वैश्वीकरण के चार-पांच दशकों के दौरान पूरी दुनिया आपसी विश्वास के जरिए एक-दूसरे के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ा रही थी। लेकिन कोरोना के बाद की दुनिया में हालात बदल रहे हैं। सद्भावना का स्थान अविश्वास ने ले लिया है।  सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही हैं कि उनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं पर एकाधिकार न हो। वैश्विक स्तर पर प्रौद्योगिकी, विनिर्माण, कौशल विकास के मोर्चों पर घरेलू क्षमताएं विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है। इसने हमें पूंजी संसाधनों का पूरा उपयोग करने और दुनिया भर के उद्योगों के लिए चीन का एक मजबूत विकल्प प्रदान करने का अवसर दिया है।
4.  डिजिटलीकरण: भौतिक बुनियादी ढांचे के साथ-साथ डिजिटल बुनियादी ढांचे ने भी आज असाधारण महत्व प्राप्त कर लिया है।  आधार के रूप में पहचान, यूपीआई के रूप में भुगतान और डिजीलॉकर के रूप में डेटा प्रबंधन इस देशव्यापी प्रणाली तीन स्तंभों पर बनी है। ई-कॉमर्स आज के दौर में हमारे देश द्वारा अपनाया गया मंत्र है। अनुमान है कि यह व्यापार 2017 में 38.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2026 तक 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगा। विश्व बैंक ने इस बात की सराहना की है कि भारत ने इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई है और इसके माध्यम से सामाजिक सुरक्षा हासिल की है।
5.  डीकार्बोनाइजेशन: विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने चेतावनी दी है कि वर्ष 2023 तापमान रिकॉर्ड के इतिहास में सबसे अधिक औसत तापमान होगा। इस वार्मिंग के प्रभाव को रोकने के लिए तत्काल उपायों की आवश्यकता है। सौभाग्य से, भारत की औसत दैनिक प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत (800 वाट) अमेरिका (9000 वाट) की तुलना में बहुत कम है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा आयोग ने कहा कि हमने अपनी भविष्य की मांग में वृद्धि को पूरा करने के लिए 174 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित की है। हमारा देश 2030 तक इस क्षमता को 500 गीगावॉट तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है। अब हमारा देश इस क्षेत्र में विश्व में चौथे स्थान पर है। निश्चित रूप से यह कहने का समय आ गया है कि "नए दौर में लिखेंगे, मिल कर नई कहानी..." -मच्छिंद्र ऐनापुरे, जत जि. सांगली