एक बार आकाश में दो बादल मिले। काला बादल पानी से भारी बन गया था। वह नीचे जमीन की ओर आ रहा था। सफेद बादल बहुत हल्का था। वह ऊंचे आसमान में उड़ रहा था। मिलने पर सफेद बादल ने काले बादल से पूछा, तुम कहाँ जा रहे हो? काले बादल ने कहा, जमीन की ओर। मैं वहां जाकर बारिश करना चाहता हूं। मेरे पास जितना भी जल है, वह सब मैं माता भूमी को देने जा रहा हूं।
धूप से जमीन तपी हुई है। नदियां, तालाब, कुएं सूख गए हैं। यहां तक कि पेड़ भी सूख गए हैं। किसान बेसब्री से मेरा इंतजार कर रहे हैं। मुझे जल्दी से जाना होगा। सफेद बादल उसे देखकर मुस्कुराया। उसने कहा, तुम पागल हो। क्या कभी कोई संसार में अपना धन लुटाता है? जब आपके पास का पानी खत्म हो जाता है, तो आपका जीवन भी खत्म हो जाता है! मैं स्वर्ग में जा रहा हूँ। देव बप्पा के दरबार में एक सीट खाली हो गई है। मुझे वो मिल जाएगी। सफेद बादल बड़ी जल्दी में था। वह भागते हुए आगे बढा। काला बादल धीरे-धीरे जमीन पर पहुंच गया। भारी बारिश हुई। अचानक काला बादल गायब हो गया। नदियां और नाले उफान मारने लगे। तालाब और कुएं लबालब भर गए। सारे खेत हरे हो गए। किसान खुश हो गये। सफेद बादल ऊपर जाते जाते काले बादल को देख रहा था। वह काले बादल के पागलपन पर हँसा। स्वर्ग का द्वार दृष्टि में आ गया। सफेद बादल ने दरवाजे पर दस्तक दी। एक देवदूत ने इसे खोला। उसने सफेद बादल से पूछा, तुम्हारा देवबप्पा से क्या काम हैं? सफेद बादल अपनी ही मस्ती में खोया हुआ था। उसने कहा, मैं यहां रहने के लिए आया हूं। स्वर्ग में एक जगह खाली है। मुझे यह सीट मिल जाएगी! चलो, मुझे अंदर आने दो। देवदूत ने दरवाजा खोलने के बजाय उसे बंद कर दिया। दरवाजा बंद करते हुए उसने कहा, अब वह खाली जगह भर दी गई है। देवबप्पा स्वयं विमान लेकर उस काले बादल को स्वर्ग ले आए हैं। पृथ्वी पर आनंद पैदा करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले से बेहतर इंसान और कौन हो सकता है?
तात्पर्य : समाज के लिए सब कुछ समर्पित कर देना ही मुक्ति है। अपने आस-पास के सभी लोगों को खुश करके, किसी न किसी तरह से उनकी मदद करके ही व्यक्ति खुश और संतुष्ट रह सकता है। सकता है।
- मच्छिंद्र ऐनापुरे, जत जि. सांगली
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