आज 31 दिसंबर है। श्रुति थोड़ी परेशान होकर घर आई। उसका कारण भी वैसाही था। क्लास में, उसकी मैडम ने उससे नए साल का संकल्प मांगा। वह परेशान थी क्योंकि वह दूसरों से अलग संकल्प नहीं कह सकी थी। ऐसे ही वह घर आ गई और तुरंत अपनी मां के साथ मौसी के पास चली गई। वहां मौसी की बेटी का जन्मदिन था। भोजन योजना बहुत बढ़िया थी। गुलाब जाम, केक, कचौरी और पुलाव सब कुछ श्रुति के पसंद का था। पर उसने एक ही गुलाबजाम खाया और डिश बेसिन में रख दी। मौसी ने देख लिया। श्रुति भूखी रहती, इसलिए उसकी माँ के कान पर रख दी। जब वह घर आई तो मां श्रुति पर बहुत नाराज हुईं। अगर खाना नहीं चाहती थी, तो तुम मेरे पास क्यों नहीं लायी?' इत्यादि इत्यादि।
"मुझे उसमें से कुछ भी पसंद नहीं आया," श्रुति ने गुस्से में कहा। तभी बाबा भी आये। वह भी श्रुति पर नाराज हुए और उन्होंने उसे समझाया भी। श्रुति नाराज मन से सिर नीचे किए कुर्सी पर बैठी थी। टीवी पर खबरें चल रही थीं। श्रुति के पिता समाचार सुन रहे थे। श्रुति ने सहजता से ऊपर देखा। उसने मेलघाट में कुपोषित बच्चों को टेलीविजन पर देखा और तुरंत पूछा," पापा, ये बच्चे इतने सूखे क्यों हैं?"
"बेटा, उन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है, इसलिए उन्हें प्रोटीन, विटामिन, खनिज नहीं मिलते हैं, इसलिए वे बहुत निर्जलित हैं।" बाबा ने कहा।
इतने में माँ बाहर आयी और बोली, “और जिन्हें भोजन मिलता है वे फेंक देते हैं। श्रुति ऐसे खाने को फेंकना नहीं चाहिए। "
मेरे कार्यालय में, एक खानपान बोर्ड लगता है कि प्लेट में कितना खाना बचा है और कितने लोग इसे खा सकते हैं।" बाबा ने कहा।
श्रुति ने उत्साह से उछल कर अपनी माँ से कहा,"माँ, मुझे नए साल का संकल्प सूझ गया। मैं फिर कभी प्लेट में खाना नहीं रखुंगी। " (बालभारती से छठी कक्षा के पाठ का अनुवाद) अनुवाद -मच्छिंद्र ऐनापुरे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें